...

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कब जीयेंगे हम🤔🤔🤔🤔❣️❣️
एक इंसान सब का कुछ न कुछ होता है,
किसी का बेटा,किसी का भाई,
किसी का दोस्त ,पर नहीं होता तो बस खुद का कुछ,

कभी कभी विचार आता है ,
कि इंसान का खुद से रिश्ता क्या है,🤔🤔🤔

क्योंकि हमेशा अलग अलग रिश्ते
के हवाले से लोग करते रहते हैं अपेक्षा,
और अपेक्षाओं के बोझ तले दब जाता है
वो इंसान ,

जैसे ही वो एक अपेक्षा पूरी करता है ,
फिर कोई दूसरी अपेक्षा उसके सर
पर आ पड़ती है,

और इस सबके बीच में पीछे,
छूटने लगती है उसकी जीने की चाह,
फिर वो भी चल पड़ता है उसी पथ पर,
जिसे बोलते हैं लोग जीने की राह,

धीरे धीरे वो करने लगता है खुद की उपेक्षा,
और एक दिन अपेक्षा और उपेक्षा के
भंवर में दम तोड़ देता है जीवन,

और वो मजबूरी में मुस्कुराते हुए जीता है ,
क्योंकि यहाँ भी उससे की जाती है मुस्कुराने की अपेक्षा,

पर एक इंसान अगर चाहे लड़ना अपने लिये,
तो करार दे दिया जाता है उसे विद्रोही ,क्यों क्या एक इंसान का अपने जीवन पर कोई हक़ नहीं🤔🤔🤔

लगता है जैसे सांस लेती कठपुतलियां है सभी,
कुछ हालातों से त्रस्त हैं और कुछ तथाकथित शुभचिंतकों से

ना जाने कब तक यूं मौन के घूट पीयेंगे हम,
आखिर कब जीयेंगे हम🤔🤔🤔

(अंत और अनंत के बीच में शून्य व्याप्त है,
जिस जीवन को जीवन कह सकें वो किसे प्राप्त है🤔🤔🤔)

© सौ₹भmathu₹