आँगन - सरकारी स्कूल का....।
बदलते वक़्त के साथ सब कुछ बदला है , बदली है कुरशियां नेता कि, नाम नेता के भी बदले हैं । पर इस राजनीति के चक्कर् में आज भी वैसा ही है वो "आँगन सरकारी स्कूल का...।"
नन्हें पाँव, मासुम चेहरा, आँखों में डर था या रौनक पता नहीं, और छोटे से थैले में स्लेट और चॉक लेके किसी कि ऊँगली थाम कर पेहला कदम रखा था उस विध्या के मंदिर में जिसका नाम भी नहीं जानता था उस वक़्त।
कद और कदम छोटा था इसलिए सब कुछ बड़ा-बड़ा लग रहा था। पर सब कुछ अब की तरह था। सब चेहरे नए थे। एक नीम का पेड़, जो बड़ी शान से खड़ा था। गर्व तो होगा ही उसे, देश का भविष्य उसकी छाव में जो पल रहा था. एक ब्लैक बोर्ड, जो पोर्टेबल था जहा मन किया वहा ले जा सकते थे, नीम के सहारे खड़ा था और कुछ चॉक के टुकड़े पड़े थे जो पता नहीं कबसे ऐसे के ऐसे थे। शयद उनका कोई इस्तेमाल नहीं होता था। तोह वो बोर्ड और चॉक वहा पे क्या कर रहे थे ??
उस वक़्त इस सवाल का जवाब नहीं था मेरे पास और होता भी कैसे दर के मारे कभी ऊपर ही नहीं देखा। पर आज सब कुछ साफ़ है।
12 कमरो की बड़ी ईमारत भरी पड़ी थी इस देश के ऐसे तेज़ दिमागों से जो आने वाले समय को बदलने का ज़ज्बा रखते थे या शायद अब भी रखते हैं , पता नहीं..... पर क्या सिर्फ ज़ज्बा ही काफी हैं ??
एक दीप को जलाये...
नन्हें पाँव, मासुम चेहरा, आँखों में डर था या रौनक पता नहीं, और छोटे से थैले में स्लेट और चॉक लेके किसी कि ऊँगली थाम कर पेहला कदम रखा था उस विध्या के मंदिर में जिसका नाम भी नहीं जानता था उस वक़्त।
कद और कदम छोटा था इसलिए सब कुछ बड़ा-बड़ा लग रहा था। पर सब कुछ अब की तरह था। सब चेहरे नए थे। एक नीम का पेड़, जो बड़ी शान से खड़ा था। गर्व तो होगा ही उसे, देश का भविष्य उसकी छाव में जो पल रहा था. एक ब्लैक बोर्ड, जो पोर्टेबल था जहा मन किया वहा ले जा सकते थे, नीम के सहारे खड़ा था और कुछ चॉक के टुकड़े पड़े थे जो पता नहीं कबसे ऐसे के ऐसे थे। शयद उनका कोई इस्तेमाल नहीं होता था। तोह वो बोर्ड और चॉक वहा पे क्या कर रहे थे ??
उस वक़्त इस सवाल का जवाब नहीं था मेरे पास और होता भी कैसे दर के मारे कभी ऊपर ही नहीं देखा। पर आज सब कुछ साफ़ है।
12 कमरो की बड़ी ईमारत भरी पड़ी थी इस देश के ऐसे तेज़ दिमागों से जो आने वाले समय को बदलने का ज़ज्बा रखते थे या शायद अब भी रखते हैं , पता नहीं..... पर क्या सिर्फ ज़ज्बा ही काफी हैं ??
एक दीप को जलाये...