पिता की जायदाद किसकी
पिता की जायदाद
"उफ़...!
पापा जी आपने पूरा घर ही गन्दा कर दिया| अभी अभी राधा ने पोछा मारा था और आपने चप्पलों के निशान छोड़ दिए| थोड़ी तो समझ होनी चाहिए आपको?
आप बच्चे तो हैं नहीं
बहू रिया के मुँह से ये शब्द सुनकर अनिल जी हतप्रभ से खड़े रह गए
कैसे पुलिस की नौकरी में सिर्फ उनकी एक आवाज बड़े से बड़े मुजरिमों को हिला कर रख देती थी और आज उनकी बहू उन्ही के घर में इतना सुना रही है
तभी पत्नी ने उन्हे सोफे पर बैठाते हुए कहा "कोई बात नहीं जी, बहू की बातों का क्या बुरा मानना?
बस जुबान की तेज है, बाकी उसके मन में ऐसा कुछ नहीं है
अनिल जी ने पत्नी की आँखों में देखा जैसे पूछ रहे हों "सच में...?
और फीकी सी हंसी उनके होठों पर तैर गई, लेकिन आँखों के कोर थोड़े से नम हो गये।
सोफ़े पर बैठे बैठे ही सोचने लगे कितने जतन से इस घर को खड़ा किया था
एक एक तिनका अपने हिसाब से रखवाया था इस घरौंदे का ताकि सेवा अवकाश के बाद पति पत्नी सुविधाओं के साथ आराम से रहेंगे
लेकिन आज सारी दुनिया उनके कमरे तक सिमट गई है|..
कमरे से बाहर निकलो तो कितना कुछ सुनना पड़ता था उन्हे, हॉल के अंदर फ़ायर पिट बनवाया था कि ठंड के दिनों में वहाँ आग के सामने भुनी मुँगफ़लियाँ खाएँगे|
लेकिन मजाल क्या कि बहू कभी सर्दी में आग जलाने दे, कहती थी कि पूरे घर में राख के कण फैलते हैं फ़िर वो चिमनी वैसी ही रंगी पुती दिखती थी एक दम उजली क्योंकि बहू को वैसी ही पसंद थी|
ये सब सोच रहे थे तभी पत्नी हाथ में कॉफी का मग लिए वहाँ उनके पास आ बैठीं
पति को...
"उफ़...!
पापा जी आपने पूरा घर ही गन्दा कर दिया| अभी अभी राधा ने पोछा मारा था और आपने चप्पलों के निशान छोड़ दिए| थोड़ी तो समझ होनी चाहिए आपको?
आप बच्चे तो हैं नहीं
बहू रिया के मुँह से ये शब्द सुनकर अनिल जी हतप्रभ से खड़े रह गए
कैसे पुलिस की नौकरी में सिर्फ उनकी एक आवाज बड़े से बड़े मुजरिमों को हिला कर रख देती थी और आज उनकी बहू उन्ही के घर में इतना सुना रही है
तभी पत्नी ने उन्हे सोफे पर बैठाते हुए कहा "कोई बात नहीं जी, बहू की बातों का क्या बुरा मानना?
बस जुबान की तेज है, बाकी उसके मन में ऐसा कुछ नहीं है
अनिल जी ने पत्नी की आँखों में देखा जैसे पूछ रहे हों "सच में...?
और फीकी सी हंसी उनके होठों पर तैर गई, लेकिन आँखों के कोर थोड़े से नम हो गये।
सोफ़े पर बैठे बैठे ही सोचने लगे कितने जतन से इस घर को खड़ा किया था
एक एक तिनका अपने हिसाब से रखवाया था इस घरौंदे का ताकि सेवा अवकाश के बाद पति पत्नी सुविधाओं के साथ आराम से रहेंगे
लेकिन आज सारी दुनिया उनके कमरे तक सिमट गई है|..
कमरे से बाहर निकलो तो कितना कुछ सुनना पड़ता था उन्हे, हॉल के अंदर फ़ायर पिट बनवाया था कि ठंड के दिनों में वहाँ आग के सामने भुनी मुँगफ़लियाँ खाएँगे|
लेकिन मजाल क्या कि बहू कभी सर्दी में आग जलाने दे, कहती थी कि पूरे घर में राख के कण फैलते हैं फ़िर वो चिमनी वैसी ही रंगी पुती दिखती थी एक दम उजली क्योंकि बहू को वैसी ही पसंद थी|
ये सब सोच रहे थे तभी पत्नी हाथ में कॉफी का मग लिए वहाँ उनके पास आ बैठीं
पति को...