तुम बिन अधुरे
थोड़ा गहराई से पढते है हम शब्द को भी शख्स को भी
बाते रूहानी होती है तुम्हारी,नही तो दूर रखते है हम अपने अक्स को भी
PREEET रात के बाद जब रात होती है तो तुम्हारी बात होती है
अलफाज आपके पढ लेते है ,यादों की सौगात होती है
खोये खोये रहते है, जिस्म से रूह अनजान लगती है
PREEET तुम्हारी बातो का...