...

2 views

मैं मेरा इश्क़
जिंदगी में इश्क का होना अब ऐसा ही हैं जैसे, अज़ीयत, उदासी, गुस्सा , अँधेरा औऱ पस्तावे का होना मुझे अब सब एक बराबर लगते हैं..
स्मृतियों के झूलो पर पूरा दिन झूल झूल के सिर घूमने लगता हैं रात को जब सोता हु , तो अचानक ही उठ जाता हू.। जी करता हैं कि इस रूम से बाहर निकल जाऊ नंगे पाँव बस चलता ही रहु ये गली, मोहल्ले, ये शहर सब पार कर जाऊ औऱ अपने पुराने ढरे पर पहुंच जाऊँ स्कूल के रास्ते से निकलती हुई  नदी के सिरहाने पड़े पत्थर के पास उग आए कंटीली झाड़ियों के पास बैठ जाऊ औऱ बस आकाश में मैं एक चांद के तरह नजर आते अनगिनत तारों औऱ उस अकेली चाँदनी रात को निहारता रहू..

किसी को मारने या चोट पहुंचाने से ज्यादा बुरा क्या हो सकता हैं??
एक ऐसी अवस्था  जिसमे आपका लहू रिस्ता नही हैं लेकिन आप अंदर से रिस रहे होते हैं बहुत गहराई तक अंदर टिस महसूस होता हो वो ड्रिलिंग मशीन चलती हैं ना बस वैसा ही दर्द मशीन चल रहा हैं दिल पर बिना ढर्रेर ढर्रेर की आवाज किऐ  ये अंदर चुभने वाला दर्द इतनी शांति से चुभता हैं कि बाहर वाले को अपनी खलिश का अंदाजा भी नही लगने देता हैं..
पैसा सब कुछ खरीद सकता हैं सिवाय उसके जिसके लिए आप हमेशा अधूरा महसूस करते हैं..
.
आज फिर मन खमोश हैं आज फिर किसी के जिंदगी से जाने का कोई गम नही हैं न प्यार है न नफरत हैं न शिकवा न शिकायत हैं बस खामोशी हैं शांति हैं खालीपन हैं, उदासी हैं औऱ ये अंधेरा जिसमे मुझे सबसे ज्यादा सुकून मिलेगा रोना धोना अब बन्द हो चुका हैं उसे मेरा न होना भी अब मुझे दर्द नही देता हैं
.
सब झूठ कहते है कि "प्रेम ही जीवन का आधार हैं" ऐसा लोग खुद को तसल्ली देने के लिए कहते है लेकिन मुझे किसी की तसल्ली की या जूठी उम्मिद की कोई जरूरत नही हैं क्योंकि "लोग अपनी जिंदगी में आते हैं औऱ अपना अपना किरदार निभाके चले जाते हैं" औऱ यही सच हैं
खैर,

मेरे खण्डहर दिल के सागर तट पर भ्रमण करने का मौका शायद लोगो को मिलता रहे पर उसकी गहराई में उतरने का मौका शायद ही किसी को मिले.
किसी को स्पर्श करने का अर्थ कंधे पीठ और सर पर हाथ रखना होता हैं क्योंकि लोग हमें बस इसलिए याद रहते हैं कि जब आखरी मुलाकात हुआ तो हमे किस तरह छुआ गया था.. वह लोग तो चले गए लेकिन आप अपने खाली औऱ उदास कंधे पे आज भी उसका हाथ महसूस कर सकते हैं वह उंगलिया जिसने आपके टूटते हुए आंसुओ को पौछ के आपको सम्भलने का मौका दिया  वह हाथ आज भी हमारी पीठ पर पंजा बन कर वो हाथ आज भी महसूस होते हैं में वो लोग उसका स्पर्श उसकी स्मृतियां, उसके वादे सब कुछ भूला देना चाहता हूँ, लेकिन कोई मेरे भीतर से मुझे ही निकाल के चली गई अब मुझे लगता हैं में एक चलता फिरती जिंदा लाश जिसमे न कोई भाव हैं न किसी के लिए प्रेम हैं..
खैर
.
कई बार मुझे इस बेमतलब सी बात का अफसोस रहा हैं जिंदगी भर की में वो लड़का नही बन पाया जिसके लिए कोई किसी को छोड़ दे मेरे नसीब में छुटे हुए हाथों के ठंडेपन के अलावा कुछ नही आया हैं..!!

हाहा खुश रहो..!

यहाँ तक बने रहने के लिए सह्दय आभार
यादों में बनाएं रखने के लिए बहोत सारा प्रेम..❤


© madhav (हनी समान)