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मेरा दिल :- जीत या हार
-:इक छोटी सी कहानी:-
मैं बहुत खूखार योद्धा था। मैं जब भी किसी युद्भ में जाता दुश्मन पहले ही मेरे कदमों मे हथियार रख देता। मैं कभी कोई युद्ब नही हारा था। सब कुछ ठीक चल रहा था। इक दिन मेरे दिल को इश्क नाम का रोग लग गया। मै युद्भ में गया सब दुश्मन डर के भाग रहे थे। तभी इक योद्भा मेरी ओर बढ रहा था। ये कारनामा मैंने जिन्दगी में पहली बार देखा था। जब वो थोडा़ मेरे करीब आया तो उसे देखकर मैं हैरान रह गया। ये तो मेरा दिल था। मेरे दिल ने मुझसे बगावत कैसे कर ली मैं हैरान था ये सब देखकर। मेरे दिल ने मुझे ललकारते हुए कहा," अपने हथियार मेरे कदमो मे रख दे।"
मैं मर सकता था पर हार नही सकता था।
मुझे अपनी जीत का पूरा यकीन था। मेरे हाथ में वह तलवार थी जिस पर सैकड़ों लोगों का खून लगा था। मुझ पर भी पागलपन सवार था। बिजली की तरह हम दोनों की तलवारे आपस में टकराई। मुझे पहली बार लगा कि मैं अपने से बहुत ताकतवर योद्धा से लड़ रहा हूं। उसके वारो को रोकना अब मुझे मुश्किल लग रहा था। मेरे कदम लड़खड़ाने लगे थे, मेरा शरीर खून से लथपथ हो रहा था। उस से लड़ते-लड़ते मेरी तलवार दो टुकड़ों में बट गई। मेरे दिल ने कहा,"जा तुझे मैं आखरी मौका देता हूँ। मेरे कदमों में झुक जा मैं तेरी जिंदगी बख्श दूंगा।"
मैंने जिंदगी में हार मानना कभी सीखा नहीं था। उसके वारों से मेरा जिस्म टूट रहा था। मेरे खून से मेरा शरीर नहा सा गया था।
मेरे दिल ने कहा," मैंने आज तक तुझ जैसा कोई युद्धा नहीं देखा।"
उसकी तलवार के एक बार को मैंने अपनी तलवार से रोकना चाहा। मेरी तलवार तोड़ते हुए मेरा धड़ मेरे शरीर से अलग हो गया। मेरे जमीन पर गिरते ही मेरा दिल मुझे कहने लगा। तूने ही तो कहा था कि तू कभी हार नहीं सकता। मेरी मौत ने मुझे इतना सुकून जरूर दिया। कि मेरी मौत मेरे दिल के हाथों हुई। इसे मैं अपनी हार कहता या अपने दिल की जीत।

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