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लाल टेन
बात उस समय की है जब भरतजी प्रभु श्रीरामजी को मनाने वनवास जा रहे हैं तथा सभी अयोध्या वासी भी उनके साथ है, सभी वाहनों में बैठे हैं जबकि भरतजी पैदल चल रहे है, जब भरतजी को पैदल चलते देखकर सब अपने वाहनों से उतर गये, किसी आचार्य ने टिप्पणी की कि साधक के जीवन में यही सत्य है, हर मनुष्य के मन में अनुकरण की इच्छा होती है, महापुरुषों को देखकर सोचता है कि मैं भी इनके जैसा साधक बनूँ।

मोरे जिय भरोस दृढ नाहीं, भगति बिरति न ग्यान मन माहीं।
नहीं सतसंग जोग जप जागा, नहीं दृढ चरण कमल अनुरागा।।

देखो सज्जनों! देखा-देखी किसी की साधन पद्धति को नही अपनाना चाहिये, किसी दुसरे की पद्धति को देखकर अपनी पद्धति को छोडना भी नहीं चाहिये, सभी साधन पूर्ण हैं, जब नाम परमात्मा तक ले जा सकता है तो वाहन तो कोई भी हो, सबकी शारीरिक मानसिक क्षमता एक जैसी नहीं होती, इसलिये देखा-देखी छोड देना कई बार कष्टकारी हो सकता है।

इसलिये गीता में भगवान् कहते हैं- अर्जुन! ये ज्ञान और योग कितना भी उत्कृष्ट क्यों न हो किन्तु जो कर्म के आस्थावान है उनको इस कर्म के मार्ग से विचलित नहीं करना चाहिये, कई बार योगी-ध्यानी कहते हैं- ये क्या कर्मकाण्ड में...