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घूसखोरी की तह तक..
आज हम अपनी खोज के दूसरे पड़ाव तक आ पहुँचे हैं। आज हम जिस समस्या पर विचार करने वाले हैं वह समस्या बडी प्रचंड समस्या है। इस समस्या की पहुँच दिन- प्रतिदिन बड़ती ही जारही है और लगभग हर व्यक्ति इसका शिकार बन चुका है। इसकी जडें. अत्यधिक गहराई तक पहुँच चुकी हैं।

और यह समस्या है घूसखोरी, रिश्वत । घूस लेना और देना हमारी जिन्दगी का - हमारी दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। पहले मै सोचता था कि लोग घूस देते ही क्यूँ हैं, अगर लोग धूस देना बंद कर देंगे तो लोग घूस लेना भी बंद कर देंगे। लेकिन गरीबों की, और मध्यम वर्गी लोगों की मजबूरी हो गई है घूस देना। अमीर अपना काम जल्दी करवाने के लिए कर्मचारियों की जेबें भरते हैं और उन्हें रिश्वत लेने का आदी बना देते हैं। इसके बाद उन्हें बाकी सब से भी रिश्वत चाहिए, वो खुल के नहीं बोलते पर उन्हें रिश्वत चाहिए, आप जब तब नहीं देते वो आपको दौडाते रहते हैं।

गहराई से तफ्तीश करने के बाद यह सामने आता है कि कर्मचारियों से भी उनके ऊपर वाले रिश्वत की मांग करते हैं, तो उन्हें हमसे घूस लेनी पड़ती है।

रिश्वतखोरी एक चैन की तरह काम करती है, लोग इसमें जुड़ते नाते हैं और लोगों को भी जोडते जाते हैं। अगर किसी अच्छे कार्य के लिए चेन बनाते तो वह एक दिन में ही टूट जाती, परन्तु यह चैन बड़ती ही जा रही है। इसकी जड़े हर जगह फैल चुकी हैं, अस्पतालों में, नगरपालिकाओं में, पुलिस थानों में; कचेहरियों में, सरकारी दफ्तरों में, विद्यालयों में, हर जगह।

इसकी डालों पर वार करने से कुछ नहीं होगा, हमें इसकी जड़ें काटनी होगी, ताकी हम आने वाली पीठी को रिश्वतखोरी से बचा सकें।

"Ham sabhi ko Apne Apne star per is samasya se nipatne ka Prayas karna hoga"
🙏


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