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आत्म संगनी से मिले स्नेह के फलस्वरूप आज एक वर्ष के सुखद अंतराल
आत्म संगनी से मिले स्नेह के फलस्वरूप आज एक वर्ष के सुखद अंतराल में अब हमारे मध्य जिस अनूठे संबंध की स्थापना हुई वह अनंत काल तक अब समाप्त नही होने वाली।दिन प्रतिदिन मिले स्नेह समर्पण के कारण अब हमारे बीच ऐसी कोई राज़ बचा जिसे छिपाया जा सके।
अब उसका एक भी दिन मेरे बगैर जीना मुश्किल हो गया थी।हर रात उसकी मोहब्बत की बारिश से भीगा बदन ,पिघलता बदन ,अरमानों की बारात के साथ आती है और उसकी कसक ,उसका अहसास रात से सुबह तक और शाम से रात तक मुझे महसूस होता था।

अब मेरा मेरी आत्म संगनी के साथ बना अटूट संबंध सारी सीमाओं को पार का चुका है। वो मेरी रूह में उतर चुका था।उसका मेरे प्रति कायम विश्वास अपनी जटिलता को पा चुका था। उसका मेरे बगैर तड़पना,सिसकना मुझे भी एक मीठा था दर्द देता था,वहीं उसका मुझे टूटकर चाहना,समर्पित भाव मुझ पर विश्वास दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। उसके मेरे बीच अब कोई परदेदारी नही रही थी,मेरी आत्म संगनी अब तक मेरी अर्धांगिनी का रूप धारण कर चुकी थी,उसका मुझ पर नाराज होना या मेरा उस पर नाराज होना अब कोई मायने नहीं रखता था। जितनी जल्दी उसका गुस्सा आता था उससे जल्दी उसका गुस्सा काफूर होना अब आम बात बन गई थी। मेरा मगर उसको परेशान करते रहना,हंसी मजाक कभी कभी उसकी आंखों से बहते आंसुओं की धारा के साथ एक अजीब सी टीस देता था,में कभी उसका दिल दुखाना नही चहता था मगर गाहे बगाहे मेरा रूठ जाना उसको बैचेन कर देता था।
मेरी मासूम आत्मसंगनी जो एक अर्धांगिनी बन चुकी थी अपनी आत्मा अपने तन से,मन से मुझ पर आसक्त थी,मुझे उसका समर्पण,मुझ पर आसक्त होना कभी कभी परेशान करने लगा था,उसकी वजह थी उसका मेरे प्रति अटूट विश्वास,समर्पण तथा अंधा प्यार। मुझ पर तन मन धन से उसका समर्पण मुझे पीड़ा देता था,क्योंकि मैं नही चाहता था कि अनजाने में भी मेरे कारण उसको कोई पीड़ा हो। चाहे आर्थिक हो,मानसिक हो या शारीरिक हो।
उसका मेरे प्रति अंधा प्यार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था, हम सैकड़ों मील शरीर से दूर जरूर थे मगर हमारे बीच बने संबंध नव विवाहित जीवन साथी की तरह परवान चढ़ चुके थे। उसका सानिध्य पाकर मैं अभिभूत हूं।।।
© SYED KHALID QAIS