कहानी की ख्वाइश
कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं, जो खुद को कहानी के रूप में ढलने नहीं देना चाहतीं। उनकी ख्वाहिश होती है कि उन्हें किसी ऐसे मोड़ पर रोक दिया जाए, जहाँ सब कुछ संतुलित और सुकून भरा लगे। लेकिन लेखक की अपनी मजबूरियाँ होती हैं। वह अपनी लेखनी को उस मोड़ पर थाम नहीं पाता। उसके लिए कहानी को अधूरा छोड़ देना संभव नहीं होता, क्योंकि उसके भीतर कहीं न कहीं पहले ही से यह तय होता है कि कहानी का अंत कैसा होगा। यह अंत उसके लिए महज कहानी के शब्दों का समापन नहीं, बल्कि एक संदेश देने का जरिया भी होता है।
कुछ कहानियाँ चाहती हैं कि उन्हें कभी पूरा न किया जाए। वे नहीं चाहतीं कि उनके नायक या नायिका को किसी दुखद मोड़ पर लाकर छोड़ दिया जाए। वे यह भी नहीं चाहतीं कि उनका अंत ऐसा हो, जिसे पढ़कर पाठक सिर्फ दुखी हों और फिर उन्हें भुला दें। लेकिन लेखक की सोच, उसकी जिम्मेदारियाँ और समाज के प्रति उसकी...
कुछ कहानियाँ चाहती हैं कि उन्हें कभी पूरा न किया जाए। वे नहीं चाहतीं कि उनके नायक या नायिका को किसी दुखद मोड़ पर लाकर छोड़ दिया जाए। वे यह भी नहीं चाहतीं कि उनका अंत ऐसा हो, जिसे पढ़कर पाठक सिर्फ दुखी हों और फिर उन्हें भुला दें। लेकिन लेखक की सोच, उसकी जिम्मेदारियाँ और समाज के प्रति उसकी...