तीसरी बहू ...
तीसरी बहू।
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विवाह का मंडप लगा हुआ था उस मंडप के चारों ओर बहुत सारे लोग आपस में घेरे हुए खड़े थे। कुछ लोग कुर्सियों पर बैठकर दुल्हन आने का इंतजार कर रहे थे। उसमें से कुछ बराती थे जो लड़के की तरफ से आए हुए थे और कई उससे ज्यादा ही लोग लड़की के तरफ से गांव वाले थे।
जय प्रकाश बाबू अपनी बेटी संध्या की शादी में खर्च करने में कोई कमी नहीं की है। बैंड बाजा सहित बरातियों के खाने पीने की उत्तम व्यवस्था की थी उन्होंने। कोई सामान घट ना जाए अपने बेटे राहुल को बार-बार डांटे जा रहे थे। सभी सामान आ गया है ना और देखना कुछ घटे नहीं इज्जत का सवाल है , बेटा और तुम्हारे दोस्त सब किधर गए हैं कोई दिखाई क्यों नहीं दे रहा है । एक से एक सवाल जयप्रकाश बाबू अपने बेटे से कर रहे हैं।
बस बाबू जी वे लोग आते ही होंगे , मैंने उन्हें आने के लिए कह दिया है । राहुल ने जवाब दिया। इतना कह कर राहुल बारातियों की सेवा करने में जुट गया।
दुल्हन को देखने के लिए सभी को बेसब्री से इंतजार हो रहा था और सभी आपस में बात कर रहे थे । खासकर जो दूल्हे के तरफ से आए हुए लोग थे ।
मोहन बाबू ने तो अपने बेटे विनय के लिए हूर की परी से भी ज्यादा खूबसूरत लड़की को ढूंढा है - रामबाबू धीरे से बोलते हुए चुप हो जाते हैं ।
वहीं पर बैठे हुए दूसरे बराती भी बोल पड़ा ।
हां - हां क्यों नहीं रामबाबू - अपने गांव में एक वही तो है जो सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा और तो और सबसे बड़ा पोस्ट पर भी। हम लोगों को भी मोहन बाबू पर गर्व होना चाहिए और उससे हमें शिक्षा भी लेनी चाहिए।
उन्होंने कितनी मुश्किल से अपने तीन बेटों और दो बेटियों को पढ़ाया लिखाया और अच्छे घर में शादी की - सुंदर जी लंबी सांस लेते हुए रामबाबू की तरफ देखते हुए बोल रहे थे। क्या जमाना था उस वक्त जब मोहन बाबू के दादा हमारे लोगों के यहां मजदूरी करके घर परिवार को चलाया करते थे। वो दिन भी क्या थे ....... और आज हर चीज उनके पास है ।
रामबाबू मायूस आवाज में सुंदर बाबू की तरफ देखते हुए बोल पड़ा।
सुंदर बाबू आकाश की तरफ देखते हुए रामबाबू को जबाव दिया - सब ऊपर वाले की मोह - माया है हम लोग तो उनकी कठपुतली हैं , उसकी मर्जी के बिना कहीं कुछ होता है क्या ?????
दुल्हन के आते ही शोर-शराबे शुरू हो जाते हैं। सभी बराती गन दुल्हन को देखने के लिए आपस में धक्का-मुक्की करने लग जाते हैं । कुछ बराती कुर्सी पर चढ़कर देखने की कोशिश करने में जुटे हैं तो कुछ बड़े बुजुर्ग अपने बच्चों को कंधे पर रखकर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं ।
गांव वाले खासकर ऐसे ही होते हैं । लड़की की शादी हो या लड़के के उसे देखने के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं।
गांव में जब लड़की की शादी होती है तो जब लड़के कार या मारुति से गांव पहुंचते हैं तो गांव की महिलाएं माथे पर साड़ी लेकर के लड़के को देखने के लिए इंतजार करते रहती है और मजाक इस तरह करते हैं मानो वर्षों से उसे जानते आ रहे हो।
वही हाल इन बारातियों का हो रहा है , वे लोग यही सोच रहे हैं कि क्या पता कब दुल्हन को देखने का मौका मिले और आज जब मिला है तो इस मौके को क्यों गवांऊं और तो और घर जाकर अपने परिवार वालों को भी तो बताना है दुल्हन का रंग , कटिंग , खान - पान वगैरह - वगैरह किस तरह का है।
जयमाला होने के बाद सभी बराती गण खाने के लिए एक जगह एकत्रित हो जाते हैं और लड़की वाले उधर लड़की और लड़के को अग्नि के फेरों में शादी कराने के लिए तैयार रहते हैं।
ज्यादा काम तो लड़की वाले पर ही निर्भर रहता है बारातियों का सेवा सत्कार इस तरह करते हैं मानो बाराती अपने घर जाकर लड़की वाले की बदनामी ना कर दें।
बंदोबस्त अच्छा नहीं था...
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विवाह का मंडप लगा हुआ था उस मंडप के चारों ओर बहुत सारे लोग आपस में घेरे हुए खड़े थे। कुछ लोग कुर्सियों पर बैठकर दुल्हन आने का इंतजार कर रहे थे। उसमें से कुछ बराती थे जो लड़के की तरफ से आए हुए थे और कई उससे ज्यादा ही लोग लड़की के तरफ से गांव वाले थे।
जय प्रकाश बाबू अपनी बेटी संध्या की शादी में खर्च करने में कोई कमी नहीं की है। बैंड बाजा सहित बरातियों के खाने पीने की उत्तम व्यवस्था की थी उन्होंने। कोई सामान घट ना जाए अपने बेटे राहुल को बार-बार डांटे जा रहे थे। सभी सामान आ गया है ना और देखना कुछ घटे नहीं इज्जत का सवाल है , बेटा और तुम्हारे दोस्त सब किधर गए हैं कोई दिखाई क्यों नहीं दे रहा है । एक से एक सवाल जयप्रकाश बाबू अपने बेटे से कर रहे हैं।
बस बाबू जी वे लोग आते ही होंगे , मैंने उन्हें आने के लिए कह दिया है । राहुल ने जवाब दिया। इतना कह कर राहुल बारातियों की सेवा करने में जुट गया।
दुल्हन को देखने के लिए सभी को बेसब्री से इंतजार हो रहा था और सभी आपस में बात कर रहे थे । खासकर जो दूल्हे के तरफ से आए हुए लोग थे ।
मोहन बाबू ने तो अपने बेटे विनय के लिए हूर की परी से भी ज्यादा खूबसूरत लड़की को ढूंढा है - रामबाबू धीरे से बोलते हुए चुप हो जाते हैं ।
वहीं पर बैठे हुए दूसरे बराती भी बोल पड़ा ।
हां - हां क्यों नहीं रामबाबू - अपने गांव में एक वही तो है जो सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा और तो और सबसे बड़ा पोस्ट पर भी। हम लोगों को भी मोहन बाबू पर गर्व होना चाहिए और उससे हमें शिक्षा भी लेनी चाहिए।
उन्होंने कितनी मुश्किल से अपने तीन बेटों और दो बेटियों को पढ़ाया लिखाया और अच्छे घर में शादी की - सुंदर जी लंबी सांस लेते हुए रामबाबू की तरफ देखते हुए बोल रहे थे। क्या जमाना था उस वक्त जब मोहन बाबू के दादा हमारे लोगों के यहां मजदूरी करके घर परिवार को चलाया करते थे। वो दिन भी क्या थे ....... और आज हर चीज उनके पास है ।
रामबाबू मायूस आवाज में सुंदर बाबू की तरफ देखते हुए बोल पड़ा।
सुंदर बाबू आकाश की तरफ देखते हुए रामबाबू को जबाव दिया - सब ऊपर वाले की मोह - माया है हम लोग तो उनकी कठपुतली हैं , उसकी मर्जी के बिना कहीं कुछ होता है क्या ?????
दुल्हन के आते ही शोर-शराबे शुरू हो जाते हैं। सभी बराती गन दुल्हन को देखने के लिए आपस में धक्का-मुक्की करने लग जाते हैं । कुछ बराती कुर्सी पर चढ़कर देखने की कोशिश करने में जुटे हैं तो कुछ बड़े बुजुर्ग अपने बच्चों को कंधे पर रखकर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं ।
गांव वाले खासकर ऐसे ही होते हैं । लड़की की शादी हो या लड़के के उसे देखने के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं।
गांव में जब लड़की की शादी होती है तो जब लड़के कार या मारुति से गांव पहुंचते हैं तो गांव की महिलाएं माथे पर साड़ी लेकर के लड़के को देखने के लिए इंतजार करते रहती है और मजाक इस तरह करते हैं मानो वर्षों से उसे जानते आ रहे हो।
वही हाल इन बारातियों का हो रहा है , वे लोग यही सोच रहे हैं कि क्या पता कब दुल्हन को देखने का मौका मिले और आज जब मिला है तो इस मौके को क्यों गवांऊं और तो और घर जाकर अपने परिवार वालों को भी तो बताना है दुल्हन का रंग , कटिंग , खान - पान वगैरह - वगैरह किस तरह का है।
जयमाला होने के बाद सभी बराती गण खाने के लिए एक जगह एकत्रित हो जाते हैं और लड़की वाले उधर लड़की और लड़के को अग्नि के फेरों में शादी कराने के लिए तैयार रहते हैं।
ज्यादा काम तो लड़की वाले पर ही निर्भर रहता है बारातियों का सेवा सत्कार इस तरह करते हैं मानो बाराती अपने घर जाकर लड़की वाले की बदनामी ना कर दें।
बंदोबस्त अच्छा नहीं था...