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वास्तविक सफलता की पहचान
*वास्तविक सफलता की पहचान*

सुबह जागने से लेकर रात्रि को सोने तक हम अनेक कार्यों में संलिप्त रहते हैं। अपने व्यक्तिगत स्तर पर, पारिवारिक स्तर पर, सामाजिक स्तर पर हम अपने मन में किसी लक्ष्य की प्राप्ति के हेतुक कोई ना कोई कार्य प्रारम्भ करते हैं। यदि सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय की भावना के आधार पर कार्य किया जाता है तो इसके परिणाम भी सुखद ही होते हैं।

हम सभी के जीवन में चुनौतियां और परिस्थितियां नैसर्गिक रूप से आती ही हैं जो हमारी आन्तरिक क्षमताओं और शक्तियों से हमारा परिचय कराती है। हर व्यक्ति अपनी क्षमताओं, शक्तियों और विशेषताओं का संतुलित रूप से युक्तियुक्त उपयोग करने का प्रशिक्षण अपने व्यक्तिगत विवेक और बुद्धिबल से स्वयं को देता है। व्यक्तिगत कुशलता और मानसिक सन्तुलन के आधार पर हम चुनौतियों का डटकर सामना करके उन पर जीत हासिल करते हुए अपना लक्ष्य या उद्देश्य प्राप्त करने में सक्षम होने लगते हैं।

परन्तु मन में उत्पन्न निजी स्वार्थयुक्त अशुद्ध विचारों का मिश्रण होने पर कभी कभी यही उद्देश्य जब उन्माद का रूप ले लेता है तो इसके दुष्परिणामों का आभास मानसिक, शारीरिक, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर होने ही लगता है। अपने निजी स्वार्थयुक्त उद्देश्य के प्रति अप्राकृतिक रूप से जागृत उत्कंठा मानसिक स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। इसी मानसिक असंतुलन के कारण लक्ष्यमार्ग से भटक जाने के भय से ऐसे लोग अपने शारीरिक स्वास्थ्य, पारिवारिक सम्बन्ध और अन्य दैनिक आवश्यक कर्तव्यों को महत्वहीन समझकर उनके प्रति अपनी रुचि लगभग खो देते हैं।

किसी लक्ष्य को चुनने के बाद यदि उसकी प्राप्ति हेतु सही योजना नहीं बनाई जाती है तथा जीवन के अन्य अनिवार्य पहलुओं को दरकिनार करते हुए निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर असामान्य रूप से खाते, सोते और सांस लेते समय भी केवल उस लक्ष्य का चिन्तन करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से ऐसे मार्ग पर चल पड़ता है जो निकट भविष्य में लक्ष्य के प्रति असंतुलित और पागलपन भरी मानसिकता के फलस्वरूप गम्भीर रूप से अवसाद और मनोरोगों के चंगुल में फंसा देता है। लक्ष्य प्राप्ति हेतु गम्भीर होना तो आवश्यक है किन्तु अप्राकृतिक रूप से उन्मादी होना अत्यन्त ही घातक है।

कुछ लोग ऐसी हास्यास्पद और भ्रांतिपूर्ण मानसिकता रखते हैं कि जीवन में तनाव, अवसाद, रोग और टूटे हुए पारिवारिक सम्बन्धों की कीमत चुकाने पर ही वास्तविक सफलता का रसास्वादन हो सकता है।

कुछ लोग अत्यधिक परिश्रम से अल्पायु में ही असामान्य और असाधारण सफलताएं तो अर्जित कर लेते हैं किन्तु उनके मानसिक स्वास्थ्य की जांच की जाए ज्ञात होगा कि वे लोगों के सामने तो प्रसन्न और जोशीले दिखाई देंगे मगर अकेले होते ही अवसाद और तनाव में डूबे नजर आएंगे।

इसका मुख्य कारण है सफलता पाने के उन्माद में अन्य आवश्यक चीजों के साथ सन्तुलन बिगड़ने के फलस्वरूप उनका जीवन के बाकी सभी पहलुओं से भावनात्मक सम्बन्ध टूट जाता है। सफलता पाने की लालसा में खुशी का अनुभव कराने वाले सभी संवेदनशील और भावनात्मक स्नेह सेतु वे अपने ही स्वार्थ रूपी संकीर्ण मानसिकता की कुल्हाड़ी से टुकड़े टुकड़े कर देते हैं। ऐसी स्थिति में अपनी ही सफलता की खुशी सांझा करने के लिए उनके निकट कोई नहीं होता।

अंतः सबकुछ होते हुए भी अनन्त खालीपन का निरन्तर एहसास दीमक बनकर उन्हें खोखला करता रहता है। क्योंकि खुशी के सम्बन्ध में सार्वभौमिक सत्य यही है कि एक दूसरे से बांटे बिना इसका मधुर अनुभव कभी नहीं हो सकता।

अक्सर देखा जाता है कि ऐसे व्यक्ति अवसाद को दूर करने के लिए दवाओं का सहारा लेते हैं, किसी ना किसी नशे की शरण में चले जाते हैं या अनैतिक सम्बन्धों के दलदल में उतरने लगते हैं। ये सभी अप्राकृतिक तरीके उन्हें अस्थाई रूप से अवसादमुक्त होने का एहसास भर ही कराते हैं।

यदि अपने विवेक का सदुपयोग करते हुए प्राणायाम, अध्यात्म और ध्यान का सहारा लिया जाए तो जीवन से अवसाद और तनाव को स्थाई रूप से मिटाया जा सकता है। साथ ही साथ आने वाली पीढ़ी को हमें अपने जीवन की त्रुटियों से अवगत कराते हुए सफलता प्राप्त करने के लिए संतुलित जीवन पद्धति सिखाने का प्रयास भी करना चाहिए।

निष्कर्ष यही निकलता है कि जीवन में स्वास्थ्य, आन्तरिक खुशी, स्नेह और पारिवारिक सम्बन्धों की मधुरता खोए बिना अवसाद रहित और तनाव रहित प्राप्त सफलता ही वास्तविक सफलता है।

*ॐ शांति*
© Bk mukesh modi