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भिखमंगो का सर... दार
भिखमंगो का सर... दार

दोडते हुये जीप में चढ रहा था रिश्तेदार से मिलने गांव के लिये, एक अजनबी साहब भी चढ लिये, जीप रूकी हुयी थी.. दोडता दोडता एक छोटा बच्चा आया ...साब पांच रूपये दो खाना खाना है, मैने जैब में हाथ डाला की वो साहब बोल उठे "चल भिखमंगा कहीं का भाग यहां से... "
मैने उनको टोका अरे साहब बच्चा है जाने दो और पांच का सिक्का उसकै हाथ में रख दिया।इतने में जीप भी चलने लगी दो चार सवारी और थी उसमें। जीप वाला सावरियो को अवाज लगाता लगाता जीप बढा रहा था।
"अरे भैय्या ये इनका रोज का काम है"... वो साहब मुझसे बोले... "हां...कोई नहीं जी".. मेने उत्तर दिया, "नहीं... नहीं आप लोगो ने ही बिगाड रखा है सालै हरामखोर कमाकर खाते जौर आता है भिखमंगे कहीं के " वो साहब फिर से बोले... इतने में मैरा गंतव्य आ गया शायद साहब को भी यही उतरना था , शायद वे इस गांव में कहीं ऊंची नौकरी करते हैं ,वे उतरे मुझसे राम राम की और चलते बने । में भी उतर गया... "लाओ साहब 25 रूपये छुट्टे देना " जीप ड्राईवर बोला, हां.. ये लो मेने उसे 25 रूपये दिये और जाने लगा।,पीछे से जीप वाले की बडबडाने की आवाज आ रही थी.... "भिखमंगा कंही का रोज आता है कभी किराया नहीं देता ..रोब झाडता है 25 रूपये किराया खा जाता है भिखमंगो .....का ..सर...दार "
मै समझ चुका था वो साहब रोज आते हैं और यह उनका रोज का काम है
मुकेश कुमार कुमावत 29.5.20