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Sarthak calling : chapter 1
                           अध्याय 1-  पछतावा

मेरे कदम रुक नही रहे थे |पिछले कुछ दिनों में कुछ ऐसी घटनाएं हुई है , जिन्होंने मुझे अंदर से झकझोर कर रख दिया है।मैं कुछ और समझ नही पा रहा हूँ।मेरे अंदर सही और गलत की परख करने की क्षमता लगभग खत्म सी हो गयी है ।मैं बस इसी मंजिल की तलाश में हूँ, जो मुझे मेरे अंदर की व्यथा से मुक्ति दिला दे।
मैं खुद एक पत्रकार हूँ। मेरी आमदनी ठीक ठाक है । कह सकते है मेरे पास किसी चीज की कमी नही है । फिर पता नही क्यों मैं इन सब चक्कर में पड़ गया ।
मैन अपनी व्यथा अपने एक दूसरे पत्रकार दोस्त मयंक श्रीवास्तव को बताई । उसने कहा कि मेरी बातें उसकी समझ से परे हैं।हा , उसने एक संभावित हल बताया । उसने कहा कि मुझे मनोवैज्ञानिक से मिलना चाहिए । उसने कहा जैसे मेरी बातें है , उस हिसाब से मुझे केवल एक मनोवैज्ञानिक ही समझ सकता है । मेरे पत्रकार दोस्त ने मुझे एक मनोवैज्ञानिक का नंबर भी दिया । दोस्त ने उस मनोवैज्ञानिक का नाम कल्पना बताया ।
कल्पना का मकान हाई वे के इधर एक गली के अंदर था । वो अपने मकान में ही अपना क्लीनिक चलती थी । कल्पना से मिलने की मुझे इतनी जल्दी थी कि मैं अपने पत्रकार दोस्त के यहां से सीधा कल्पना जी के क्लीनिक पर पहुच गया ।
मैं कल्पना जी के क्लीनिक पर पहुच गया । मैंने डोरबेल बजाई।एक 25 साल की नवयुवती ने दरवाजा खोला । मैने कहा मुझे कल्पना जी से मिलना है ।
"जी बोलिये , मैं ही कल्पना हुँ" उसने कहा।
सच कहूँ ,तो यह सुनकर मैं चौक गया था । मैंने सोचा भी नही था कि कल्पना मेरे...