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संक्रांति काल-पाषाण युग १
भूमिका एवं परिचय

प्रिय पाठक मित्रों ,
यह कहानी मेरी शुरुआती कहानियों में से एक है और इसी लिए मेरे दिल के बेहद करीब भी है।मुझे हमेशा से लगता रहा और अब भी यही लगता है कि,कहानी लिखना,कविता लिखने से कहीं अधिक मानसिक परिश्रम का काम है।जहाँ कविता में पल दो पल के भाव भी अभिव्यक्ति पा जाते हैं,वहीं कहानी लिखते वक्त एक छोटा मोटा शोधकार्य ही करना पड़ता है।अपनी स्मृति मेंं से सभी अनुभवों को छान कर रोचकता के साथ उन्हें प्रस्तुत करना इतना सहज हो भी नहीं सकता।

कहानीकार अपनी कहानी के हर किरदार को जब खुद जीता है तब जाकर कहीं पाठकों को उन किरदारों से जोड़ पाता है।मैंने भी अम्बी और जादौंग से लेकर सारकी तक के सभी किरदारों के मनोभावों को जीने का प्रयास किया और तब जाकर पाषाण युग के विषय में अपनी  कल्पना को एक कहानी का रूप दे पाया हूँ।कहानी को रोचक बनाए रखने के प्रयास में जो घटनाक्रम डाले गये हैं,उनकी वास्तविकता एवं ऐतिहासिक सत्यता का मैं कोई दावा नहीं करता हूँ,इसलिए पाठकों से निवेदन है कि, कहानी को सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से पढ़ें।कहानी मेंं किसी भी क्षेत्र,जाति,देश या काल का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं करने का कारण भी मात्र यही है।आशा है कि सभी प्रबुद्ध पाठक मित्र कहानी के मूल भाव और उद्देश्य को समझते हुए इसे पढ़ेंगे और पसंद करेंगे।आपके स्नेह का अभिलाषी ...अदना सा लेखक🙏🙏 🙏  
और्वविशाल "वरुणपाश"


संक्रांति काल - पाषाण युग
परिचय

यह उस काल की कहानी है जब मनुष्य और पशु में ज्ञान का अंतर नहीं था।अंतर सिर्फ ताकत पर आधारित होता था।कभी भक्षक,भक्ष्य बन जाता तो कभी भक्ष्य भक्षक। पुरुष अपनी शिकार की योग्यता के आधार पर मालिक बनकर रहता था और मादा उसकी भोग्य वस्तु जो उसके लिए माँस पकाती और उस के लिए संतान पैदा करती थी।

चूँकि शिकार करने की योग्यता पर पुरुषों का वर्चस्व माना जाता था,साथ ही गुफा की सुरक्षा उसी की जिम्मेदारी थी,इसीलिए एक से अधिक मादा संतानों का पालन पोषण करना व्यर्थ का व्यय माना जाता था।पहली मादा संतान के बाद में उत्पन्न मादा संतानों को देवता के सुपुर्द कर दिया जाता था।सिर्फ पुरुष संतानों को ही पालन पोषण मिलता था।

मादा से यही अपेक्षा की जाती थी कि,वह मजबूत पुरुष संतान उत्पन्न करे और गुफा के सामर्थ्य को बढाए।जिस गुफा में पुरुष कमजोर होते थे या मादाओं की संख्या ज्यादा होती थी,उस गुफा पर  दुसरी गुफा के मजबूत गुफा पुरुष अधिकार कर लेते थे ....और उसकी मादाओ के मालिक बन जाते थे।

स्त्री और पुरुष का संबंध मालिक और सेविका का ही माना जाता था।पुरुष स्त्री की रक्षा और पोषण के बदले उसके देह का इस्तेमाल करता था।

मालिक शिकार करता है मादा को प्रसन्न करने के लिए...
वो मादा को अच्छे से अच्छा शिकार लाता है तो बदले में उम्मीद रखता है कि वो रात को उसकी नींदों को सुकूनमय बनाए,साथ ही उसके अहं को संतुष्टि भी दे।
वो थक जाता है शिकार कर के और अगले दिन के शिकार के लिए उसे शक्ति की आवश्यकता होती है,अतः मादा शिकार को पका कर गुफा के सभी पुरुषों के लिए खाना तैयार करती और साथ ही पुरुष की कुंठाओं को भी अपने प्रेम से शांत करती।

अम्बी

वो पहली मादा थी जिसने मादा को नारी की पहचान दिलाई जिसने विचार करना सीखा...जिसने देवता की अनुभूति की और अपने अन्तर्मन में देवता के आदेशों
को समझा।वही पहली मादा थी,जिसने देवता का विधान बताकर,मानव के जीवन में उन नियमों का प्रतिपादन किया जो पुरुष की स्वच्छंदता को बाँधते थे मर्यादा के घेरे में।पशु और मानव में बुद्धि का फर्क उसने ही उजागर किया था।

मादा को भी मानव श्रेणी में डालने का श्रेय उसे ही जाता है....उसने ही तो सिद्ध किया कि,मादा भी स्वयं में क्षमता रखती है,खुद के लिए शिकार भी कर सकती है और अपनी इच्छा से अपना पुरुष भी चुन सकती है।

पुरुष के शक्तिप्रदर्शन का इनाम नहीं है मादा...वो जीवन रखती है....वही जीवन देती है....वही पालन भी करती है ....और वही गुरू बनकर....पोषण भी कर सकती है ।
हाँ उसका नाम अम्बी था ....प्रथम क्रांति की प्रणेता... अम्बी।वो विचार करती थी,यह उसकी विशेष योग्यता थी, जिसके आधार पर मादा के आत्मसम्मान के सिद्धान्त
को उसने प्रतिपादित किया था।

उसने अन्तर्मन के इशारों को समझना सीख लिया था।सभी पुरुष उसके मालिक नहीं बन सकते.....अम्बी का अंतर्मन कह रहा था, वही एक उसका मालिक है जिसके संग से उसने मजबूत पुरुष व सौम्य मादा संतान उत्पन्न की हैं।जिसके साथ की वजह से गुफा की शक्तियाँ बहुत उन्नत हो गयी हैं ,जिसके साथ मिलकर ,अम्बी ने अपने से उत्पन्न संतानों को सम्मान करना सिखाया था अपने उत्पत्तिकर्ता का और अपने पोषक का,साथ ही सम्मान करना अपनी जननी का।

उसने अपनी संतानों को सिखा़या कि वे सम्मान करें अपने देवता का और देवता के बनाए नियमों का।अम्बी के पुत्र और पुत्रियाँ मानते थे कि,देवता खुद अम्बी को नियमों का आदेश देते हैं,फिर धीरे-धीरे वे जानने लगे कि,देवता के आदेश कमोबेश सभी को मिलते हैं...कुछ उनपर ज्यादा ध्यान दे पाते हैं तो कुछ कम...पर देवता सभी का दिशानिर्देश करते हैं। देवता सबसे शक्तिशाली है और उसके नियम तोड़ने पर भारी दंड देता है।

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अम्बी और जादोंग अपने से पोषित उन नौजवानों और नवयोवनाओं के परिवार को देख प्रफुल्लित हैं।पास ही सारकी व गौरांग भी बैठे मुस्कुरा रहे हैं । पालन पोषण का अधिकार भले ही अम्बी ने अपने पास रखा,परन्तु उन युवाओं और युवतियों में, उनकी संतति भी तो सम्मिलित हैं।परंतु उनका चुनाव अपने शारीरिक सुख की पूर्ति करना था,जबकि अम्बी ने एक परिवार और
एक समाज बनाने के लिए स्वयं का चुनाव किया।
निश्चित तौर पर वह पहली मादा थी ,जिसने मानवीय रिश्तों की स्थापना की और संतानों की परवरिश के तौरतरीके विकसित किए,उन्हें श्रेष्ठ बनाने के लिए।

आज ये गुफा मानव एक सामाजिक जीवन जीना प्रारंभ कर चुके हैं,वह इनके बर्ताव में स्पष्ट नजर आ रहा है सम्मान,मर्यादाएं,आपसी व्यवहार में प्रेम व सौहार्द,ये सब तो कभी कल्पनाओं में भी ना सोचा था हमारी विचारशील नायिका अम्बी ने,अपने जीवन के आरंभ में...।सबसे बड़ी बात कि,ये सम्मान स्त्रियों के प्रति भी स्पष्ट दृष्टिगत हो रहा था,जो पहले मात्र तब दिखाई देता था जब पुरुष अपनी कामेच्छा की पूर्ति के लिए उसके समीप आता था।वाकई यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन था .... यह संक्रांति काल था वैचारिक परिवर्तनों का।

उस काल में मादा संतानों का भी पोषण करके अम्बी ने एक नई परंपरा की शुरुआत की,जिसने मादा को नारीत्व का सम्मान दिलाया।अभी तक किसी और गुफा ने इतनी वृद्धि नहीं की और इस उन्नति की असली वजह ......... अम्बी की विचार शक्ति है ।

क्रमशः

संक्रांति काल की कहानी,नायिका अम्बी पर केन्द्रित है। ऐसा क्या किया अम्बी ने जो वह इस कहानी की मूल नायिका बन गई ...?
अपने समाज की संस्थापक और प्रथम गुरू बन गई ...?
नारी को पुरुष के इस्तेमाल की वस्तु से सीधे ही पुरुष की प्रेरणा कैसे बना दिया उसने?
पाषाण युग की एक नारी अम्बी के संघर्षों की दास्तान  मानवीय संवेगों के अनेक रंगों से रंगी एक कलाकृति है यह गाथा -संक्रांति काल।
जुड़े रहिए ,पढ़ते रहिए ,"संक्रांति काल - पाषाण युग"

धन्यवाद

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विशाल मीणा
© बदनाम कलमकार
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