स्त्रियां 40 पार की
चालीस पार करती स्त्रियां न बूढ़ी होती हैं न बच्चियां..
ज़िंदगी के तमाम झंझावात झेलकर अब इनकी ज़िंदगी लगभग सम पर आ चुकी होती है..इनके बच्चे भले इतने बड़े न हों कि सेटल हो चुके हों पर इतने छोटे भी नहीं होते कि उनकी सुसु पॉटी के लिए रात रात भर जागना पड़े..
पर कभी गौर किया है आपने कि चाहे कामकाजी स्त्री हो या घरेलू चालीस के बाद वह किंचित अनमनी,चिड़चिड़ी,उदास और बेजार रहने लगती हैं...घर वाले उनके बदलते मूड से चिंतित नहीं होते बल्कि खीझते हैं और उठते बैठते उन्हें सुनाते हैं कि आख़िर किस बात की कमी है तुम्हें जो मुंह बनाए रहती हो!
यह स्त्रियां भी सोचती हैं कि हां आख़िर मुझे किस बात कि कमी है..घर है,गाड़ी है,पति है,बच्चा है,पैसा है फ़िर क्या है जो मिसिंग है..जीवन में इतने स्ट्रगल झेलते हुए भी उतने आंसू नहीं बहे जितने इन दिनों बहते हैं..किसी काम,किसी बात में मन नहीं लगता ..यह दोहरे गिल्ट में रहती हैं..
लोगों को समझना ही नहीं आता कि स्त्रियों के लिए पति, पुत्र, पैसा और प्रेमी यही केवल दुख या सुख के कारण नहीं होते बल्कि उम्र के साथ होने वाले हार्मोन बदलाव डिप्रेशन और जीवन संघर्षों के जो निशान पहले से मन पर होते हैं वह इन्हें भीतर से बीमार कर रहे तोड़ रहे..इन्हें आपके तानों, सलाहों या कि आपने इनके लिए क्या क्या किया है कि लिस्ट नहीं बल्कि दवाओं की काउंसलिंग की और बहुत सारे प्यार की ज़रूरत होती है..
जैसे किसी छोटी बच्ची की केयर की जाती है वैसे ही इन्हें भी दुलार चाहिए होता है पर आपकी समझाइशों और फरमाइशों के तले दबकर यह जीते हुए भी अक्सर मरने की बातें करती हैं..खूब सजी धजी स्त्रियों का मन भी इन दिनों रोता है, उजाड़ होता है..यह दुनिया से घबराकर डरकर अपनी एक दुनिया बना लेती हैं जिनमे इन्हें एकांत भाता है और दुनिया इन्हें असामाजिक और घमंडी का खिताब दे देता है..बढ़ता वजन, मूड स्विंग, उंगलियों के जोड़ों में अकड़न, थकान, अनिद्रा इनके आलस का परिणाम नहीं बल्कि इनके अवसाद या अन्य बीमारियों के कारण हो सकता है..
आपने कब स्त्रियों के बाहरी सौंदर्य, रखरखाव के और उनके मनोभाव को उनके मन के मौसमों की पड़ताल की है..हो सकता है ऊपर से शांत चुप दिखती पर छोटी सी बात पर बिलखकर रोने वाली आपके घर की चालीस पार की स्त्री हार्मोंस के तूफान से अकेले लड़ रही हो और आप माथे पर बल डालकर उकताए से पूछ रहे हों कि आख़िर तुम्हें किस बात की कमी है प्रॉब्लम क्या है तुम्हारी..?
हो सके मेरे द्वारा कहे गए बातों से किसी को चोट लगे तो मैं माफी मांगती हूं मैं जो देखा वही लिखा है....
और हां अवसाद शहरी लोगों की बीमारी नहीं बल्कि संवेदनशील लोगों की बीमारी है..
© ठाकुर बाई सा
ज़िंदगी के तमाम झंझावात झेलकर अब इनकी ज़िंदगी लगभग सम पर आ चुकी होती है..इनके बच्चे भले इतने बड़े न हों कि सेटल हो चुके हों पर इतने छोटे भी नहीं होते कि उनकी सुसु पॉटी के लिए रात रात भर जागना पड़े..
पर कभी गौर किया है आपने कि चाहे कामकाजी स्त्री हो या घरेलू चालीस के बाद वह किंचित अनमनी,चिड़चिड़ी,उदास और बेजार रहने लगती हैं...घर वाले उनके बदलते मूड से चिंतित नहीं होते बल्कि खीझते हैं और उठते बैठते उन्हें सुनाते हैं कि आख़िर किस बात की कमी है तुम्हें जो मुंह बनाए रहती हो!
यह स्त्रियां भी सोचती हैं कि हां आख़िर मुझे किस बात कि कमी है..घर है,गाड़ी है,पति है,बच्चा है,पैसा है फ़िर क्या है जो मिसिंग है..जीवन में इतने स्ट्रगल झेलते हुए भी उतने आंसू नहीं बहे जितने इन दिनों बहते हैं..किसी काम,किसी बात में मन नहीं लगता ..यह दोहरे गिल्ट में रहती हैं..
लोगों को समझना ही नहीं आता कि स्त्रियों के लिए पति, पुत्र, पैसा और प्रेमी यही केवल दुख या सुख के कारण नहीं होते बल्कि उम्र के साथ होने वाले हार्मोन बदलाव डिप्रेशन और जीवन संघर्षों के जो निशान पहले से मन पर होते हैं वह इन्हें भीतर से बीमार कर रहे तोड़ रहे..इन्हें आपके तानों, सलाहों या कि आपने इनके लिए क्या क्या किया है कि लिस्ट नहीं बल्कि दवाओं की काउंसलिंग की और बहुत सारे प्यार की ज़रूरत होती है..
जैसे किसी छोटी बच्ची की केयर की जाती है वैसे ही इन्हें भी दुलार चाहिए होता है पर आपकी समझाइशों और फरमाइशों के तले दबकर यह जीते हुए भी अक्सर मरने की बातें करती हैं..खूब सजी धजी स्त्रियों का मन भी इन दिनों रोता है, उजाड़ होता है..यह दुनिया से घबराकर डरकर अपनी एक दुनिया बना लेती हैं जिनमे इन्हें एकांत भाता है और दुनिया इन्हें असामाजिक और घमंडी का खिताब दे देता है..बढ़ता वजन, मूड स्विंग, उंगलियों के जोड़ों में अकड़न, थकान, अनिद्रा इनके आलस का परिणाम नहीं बल्कि इनके अवसाद या अन्य बीमारियों के कारण हो सकता है..
आपने कब स्त्रियों के बाहरी सौंदर्य, रखरखाव के और उनके मनोभाव को उनके मन के मौसमों की पड़ताल की है..हो सकता है ऊपर से शांत चुप दिखती पर छोटी सी बात पर बिलखकर रोने वाली आपके घर की चालीस पार की स्त्री हार्मोंस के तूफान से अकेले लड़ रही हो और आप माथे पर बल डालकर उकताए से पूछ रहे हों कि आख़िर तुम्हें किस बात की कमी है प्रॉब्लम क्या है तुम्हारी..?
हो सके मेरे द्वारा कहे गए बातों से किसी को चोट लगे तो मैं माफी मांगती हूं मैं जो देखा वही लिखा है....
और हां अवसाद शहरी लोगों की बीमारी नहीं बल्कि संवेदनशील लोगों की बीमारी है..
© ठाकुर बाई सा