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स्त्रियां 40 पार की
चालीस पार करती स्त्रियां न बूढ़ी होती हैं न बच्चियां..

ज़िंदगी के तमाम झंझावात झेलकर अब इनकी ज़िंदगी लगभग सम पर आ चुकी होती है..इनके बच्चे भले इतने बड़े न हों कि सेटल हो चुके हों पर इतने छोटे भी नहीं होते कि उनकी सुसु पॉटी के लिए रात रात भर जागना पड़े..

पर कभी गौर किया है आपने कि चाहे कामकाजी स्त्री हो या घरेलू चालीस के बाद वह किंचित अनमनी,चिड़चिड़ी,उदास और बेजार रहने लगती हैं...घर वाले उनके बदलते मूड से चिंतित नहीं होते बल्कि खीझते हैं और उठते बैठते उन्हें सुनाते हैं कि आख़िर किस बात की कमी है तुम्हें जो मुंह बनाए रहती हो!

यह स्त्रियां भी सोचती हैं कि...