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देर कर देती हूं
हां कभी कभी देर कर देती हूं । कुछ बोलने मैं,कुछ करने मैं, क्यों? क्योंकि ज्यादा सोचना की ये गलत तो नहीं, कहीं कोई गलती तो नहीं, शायद जो बोलना हैं , वो बोलने सै कुछ बिगड़ न जाए, कहीं वो दूर न हो जाए, जिसके लिए खुदको तुम बना लिया, जिसके लिए तुमने मेने मैं बना लिया, पर लगता हैं , अगर इतना अच्छा चल रहा हैं , कहीं वो सब बिगड़ न जाए,या शायद और अच्छा हों जाए, डर लगता हैं, इसलिए लिख दिया , शायद लिख कर मुझको एहसास हो की तुमको ही बोल रही हूं,।
मैं इसलिए नहीं बोलती क्योंकि मुझको लगता हैं की मैं तुम हूं और तुम मैं,
पर लगता है अगर नहीं बोलूंगी तो पता कैसे लगेगा ,
पर अगर हम एक है तो बताना क्यों?और पूछना क्यों?
क्या सच मैं पूछना चाहिए?
अच्छा ठीक है मैं दिल की सुनती हूं, ठीक हैं न, और वक्त पर छोड़ देती हूं , शायद ये मेरी बेवकुफी न हो, या मैं गलत हु मैने ही गलत समझ लिया हों?
हो सकता है , मुझको नही लगता, अब तो ये वक्त या तुम ही बता सकते हों।