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फिजूलखर्ची
लता मुंह फुलाए खिड़की से बाहर देख रही थी उसके विवाह हुएं आठ महीने बीत चुके थे। शुरू के दिनों को छोड़कर, कोई दिन ऐसा नहीं गया जब उसे सुननी न पड़ी हो। वो बुदबुदाती और यहीं आकर बैठ जाती
ऐसा नहीं था कि उसे यहां कोई कमी थी।सारे एश_ओ_अराम थे। एक दो नौकर चाकर भी थे।सास (शकुन्तला देवी) भी प्यार करती थीं। ससुर भी बेटी जैसी मानते थे पति (निरज) तो बहुत अच्छे थे, बहुत प्यार करते थे, सभी इच्छाएं पूरी करते थे। मांयके भी खूब ले जाते थे।
फिर क्या था जो उसे परेशान करता था। इसका कारण उसे स्वयं भी पता था, इसके लिए उसकी मम्मी भी बहुत समझाति थीं। लेकिन उसने मां की बातों की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया।
उसकी परेशानी का कारण था, मनमानी करना, फिजूलखर्ची करना और कोई भी कार्य सुचारु रूप से न करना
मां कहती लता तू यूं पैसे फिजुल मत खर्च किया कर तो वो कहती मम्मी सब चलता है पापा सुबह उठाते तो कहती पापा सोने दो न कभी बजा ही क्या है,सात ही तो बजे हैं फिर जिंदगी भर जल्दी ही तो उठना है। बाजार चलने पहले list'बनाने के लिए कहते तो कहती तो कहती अब ये झंझट कौन पाले। बाजार में जो अच्छा लगेगा ले आएंगे।
आज यही सब बातें उसके वैवाहिक जीवन को अस्त व्यस्त कर रही हैं।
अभी परसों की बात है, उसने चावल बनाए आधे परोसे और आधे फेंक दिए हैं। देखकर शकुन्तला जी का जि जल गया गुस्से में बोलीं बहू खाने की कोई कमी नहीं है परमात्मा ने बहुत दिया है लेकिन फेंकने के लिए कहां से लाऊं।ये अन्न का अपमान है, मां अन्नपूर्णा का अपमान। इससे लक्ष्मी जी रुठ जाती हैं। उतना ही बनाओ जितना सब लोग खा सकें।
बात तो सही थी, इन्हीं बातो के लिए तो उसकी मम्मी भी गुस्सा करती करतीं थीं एक दिन वो नीरज के साथ बाजार गई थी, लाख कहने पर भी उसने लिस्ट नहीं बनाई और बाजार से बेजरुरत का बहुत सा सामान ले आई
उसे पेंटिंग का बड़ा शौक है। एक महीना पहले उसके जन्मदिन पर नीरज ने ब्रश की बड़ी रेंज उपहार में दी थी फिर भी कितने ही नम्बरों के ब्रश खरीद लिए। टेबल रनर के लिए नीरज ने कहा अपने घर मे तो इस साइज़ की कोई टेबल नहीं है, फिर ये 500-700रूपये के रनर खरीद कर क्या करोगी।
लेकिन हमेशा की तरह वो नहीं मानी और घर में आकर उनकी तू तू मैं मैं हो गई। वो जानती है कि यह टोका-टाकी कहना सुनना सब सही है लेकिन वो खुद को बदल नहीं पाती
आज सुबह भी वो दूध गैस पर रखकर विडियो में मग्न हो गई और इतनी देर में दूध निकल गया। आज फिर उसे डांट पड़ी थी, इसलिए वो यहां मुंह फुलाए बैठी थी
हाय हैलो यार यहां किस सोच में बैठी बाहर देख रही है। विधि कीआवज से उनकी तंद्रा टूटी। विधि उसकी प्यारी सहेली है विधि फिर बोली क्या बात है तैयार नहीं हुई। बाजार नहीं चलना क्या ।
अपनी बात को जारी रखते हुए विधि बोली देखो मेंने तो लिस्ट भी बना ली। लता उसे देखे जा रहीं थी बस। विधि बोली लिस्ट बनाने से अच्छा रहता है। खरीदारी भी जल्दी हो जाती है।
कोई जरूरत की चीज छुटती नहीं और फालतू की चीज आती नहीं । मैं तो भई bread butter भी हिसाब से मंगाती हूं। कहीं expiry हो जाए तो फेंकनी पड़ती है। अखिल को ये अच्छा नहीं लगता है और मुझे भी ये अन्न का अपमान जैसा लगता है।
विधि की बातें सुन लता भी एक मजबूत निर्णय के साथ उठी। अब वो भी चीजें बर्बाद नहीं करेगी और न ही फिजूलखर्ची करेगी। ऐसा सोच वो भी बाजार जाने के लिए लिस्ट बनाने के लिए लिस्ट बनाने लगी।


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© सरिता अग्रवाल