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भोलेनाथ
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक भोलेनाथ जो एक छोटा सा बच्चा को मैंने नाम दिया था।
भोलेनाथ से मेरी भेंट पहली बार एक केन्द्रीय विद्यालय में हूई थी।उस बच्चे का असली नाम अनिकेत है।
पहला दिन जब मैं एसेंबली में गई तो देखा कि एक पांच साल का बच्चा लाईन के आगे खड़ा था।
देखने में गोल मटोल एकदम सीधा सादा। उसे बात समझने में मुश्किल होता था। प्रिंसीपल मैम उसे डांट रही थी ठीक से खड़ा होने के लिए।वह एकदम डरा हुआ था।वह मेरी ओर ताका और मैं उसकी ओर। चेहरे पर हल्का मुस्कुराहट दिखा।मैं भी मुस्कुरा दी।लगा दोनों में दोस्ती हो गई। उसके सिर पर हाथ ‌ फेरकर मैं बोली बाबू हाथ जोड़कर खड़े हों जाओ। उसने वैसा ही किया। धीरे से पूछा नाम क्या है।तोतली बोली मे बोला अनिकेत।
क्लास में जाकर मैं खोजने लगी पीछे से आवाज़ आई मैं यहां हूं।
प्रिंसीपल मैम डांटने लगी उसे सर मत चढ़ाईए
पढ़ता लिखता कुछ नहीं सिर्फ खाते रहता है और घूमता रहता है। मुझे बहुत हंसी आई।
उसने इशारे से कहा नहीं डांटेगी।
हमारी दोस्ती चलता रहा।
पता चला वह दिमाग का कमजोर है। किसी भी बात को याद नहीं रख पाता है। मैं उसे अपना औफ टाईम देकर सिखाने लगी।
उसके चाचा आकर बात करने लगे। कहने लगे कि वह कुछ नहीं कर सकेगा।
वह कहने लगा कि मैं मैम को छोड़कर नहीं जाऊंगा। तारकेश्वर मे मेरा एक कोचिंन था वहां अनिकेत स्कूल के बाद आने लगा। बाद में मेरे लिए हर शनिवार खाना लेकर आता था।कहता था मेरे साथ रहेगा।घर के लोग आश्चर्य करने लगे कि इतना बदलाव उसमें उन्होंने कभी देखा नहीं था।2020मे मैं कोरोना के कारण वहां जाना छोड़ दिया।सारे बच्चे डर गये उसमें अनिकेत भी था।उस समय वह 8 में पढ़ता था।
इस साल वह दसवीं का परीक्षा दिया। पहल ‍दिन परीक्षा देकर मुझे फोन किया कि मैम मैं पहला इम्तिहान बहुत अच्छा दिया।उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैं भी बहुत खुश थी। उसने कहा मैम यह सब आपके कारण हुआ।
बोला आपका भोलेनाथ अब समझदार हो गया। उसने कहा कि मैम मेरे साथ रहिए।
बेचारे भोलेनाथ नासमझ ही रह गया।