...

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ताल्लुक ( रिश्ता बैचैनियो से )
ताल्लुक नहीं रखते अब किसी से
अब किसी से कुछ बयां करने से भी डरते हैं

देखा है हमने दिलों कि बस्तियों को उड़ते
अब ख़्वाबो में भी आंसिया कहां देखते हैं

गुजरी है ज़िंदगी जिन राहों से
अब उन राहों पर सफ़र कहां करते हैं

यूं तो गुजरते हैं क‌ई इक राहों से
राहें कहां मंज़िल सबकी इक होती है

ख़बर कहां उस बेखबर को
बेख्याली में उसे जीना कहां आता है

एहसास कहां उसे किसी कि तड़फ का
उसने कहां पलट कर देखा है

अंधेरों में पा लेते हैं सुकून को
उजालों ने बैचैनियो से नाता जो जोड़ा है

तस्वीरें धुंधली नज़र आतीं हैं उसे
उसने आईने में खुद को पहले जैसा कहां पाया है

हाथ रख दिल पर ख़्याल उसका बेबाक हंसा करता था
आज़ वो उसके ख़्याल से भी रोता है

रौनकें होती थी जिसके लफ़्ज़ों में
आज़ उसकी जुबां उसका साथ कहां देती है

धोखा है साथ किसी का इस दुनिया में
यहां तो साथ खुद का भी कहां किसी को मुक्कमल मिलता है

❤️✨

© पलक शर्मा


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