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यादोँ का बचपन
ʙᴀᴄʜᴩᴀɴ
यादो का बचपन
एक किस्सा सुनाती हु अपने बचपन का,
साथ खाना पीना,उठना बैठना,कढ़ाई बुनाई करना और धमचोक्ड़ी करना दिन भर ,कब शाम हो जाती और वह चली जाती अपने घर,हम उम्र थे हम दोनों
हमारे यहाँ गावं मै जो कहार काम करते थे उनकी पोती थी वह,एक अरसा गुजरा ,पिता जी शहर की और रुख किये काम धंधा की तलाश मै ,मेरे तो जेसै सुई छुभ् गई हो यह सुनते हुए, अब हमें गावं छोड़ना होगा और शहर इलाहाबाद जाना होगा,मेरा गावं प्रतापगढ़ मै है,जहां ना जाने मैंने अपनी कितनी यादेँ छोड़ आई, खैर समय गुजरा,धीरे धीरे हम अपनी यादो से बाहर निकले ,नए यादो की तलाश करने लगे,नए संग साथी बने,पिता जी का काम भी अच्छा चल रहा था।दिन गुजरते गये अपनी लय मै, एक दिन गावं से पिताजी को न्योता...