...

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जाने कहा गए वो दिन..!!
अपनी आधी जिंदगी साइकिल के नाम करने वाली मुर्ख बाला
जब घर से स्कूल और स्कूल से घर आने जाने वाले उस 15 मीन के शोर युक्त सफर के बारे में सोचती है...
तो आज मुझे स्कूटी पर ये प्रतीत होता है की...
उस दौरान जब वो साइकिल के पैडल घूमते थे तो साथ_साथ, पॉम_पॉम करते किसी ऑटो में अल्ताफ राजा का कोई गाना सीधे कानोंको चीरते हुए एक कान से होकर उस कान के द्वारे बाहर निकलता था...
और फिर मन ही मन में बजने भी लग जाता था..
और ठीक उसी वक्त, धड़कती_भड़कती भिड़ को चीरने की कोशिश में गुजरता हुआ कोई ट्रक ड्राइवर
"मैं निकला गड्डी ले के" वाली फील देते हुए अपना होरन बजाकर दूसरा गाना मन की Play list me फिट कर देता था..
कही किसी चाय की टपरी पर कोई रेडियो किसी को "मेरे महबूब कयामत होगी सुनाते हुए समोसे कचोड़ी और चाय के मजे देता था...!!

वो पन्द्रह मीन के उस संगीतमय शोर की तवज्जो उस वक्त समझ नहीं आती थी..
पर आज जब इधर_उधर टुकुर देखे हुए
अपनी धुन में कानो में हेड फोन डाले हुए सन्नाटे में उस शोर को तलाश करती हू,
तो बस एक भयानक शांति प्रतीत होती है..!!
भले ही कानो में हजारों गाने बज रहे हो..

जानें कहा गए वो सफर के पंद्रह मिनट..
खैर

मै फिर चलती हू उस शोर के कान में हेड फोन डालके
Play list गाना बजा देती हू

हो तेरे प्यार में मैं मर जावा
तेरे नाम ये दिल कर जावा
हमें ना भुलाना साजन
हमें ना भुलाना...!!!

© A.subhash

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