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पति पत्नी का प्रेम


एक सेठ जी थे उनके घर में एक गरीब आदमी काम करता था जिसका नाम था रामलाल। जैसे ही रामलाल के फ़ोन की घण्टी बजी रामलाल डर गया। तब सेठ जी ने पूछ लिया - रामलाल तुम अपनी बीबी से इतना क्यों डरते हो?"

"मैं डरता नहीं सर !! उसकी कद्र करता हूँ उसका सम्मान करता हूँ। "उसने जबाव दिया। मैं हँसा और बोला- "ऐसा क्या है उसमें - ना सूरत ना पढ़ी लिखी।"

जबाव मिला- कोई फरक नहीं पड़ता सर कि वो कैसी है पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है। *जोरू का गुलाम* मेरे मुँह से निकला। और सारे रिश्ते कोई मायने नहीं रखते तेरे लिये। मैंने पूछा ?

उसने बहुत इत्मीनान से जबाव दिया- सर जी !! माँ बाप रिश्तेदार नहीं होते वो तो भगवान होते हैं। उनसे रिश्ता नहीं निभाते उनकी तो पूजा करते हैं। भाई-बहिन के रिश्ते जन्मजात होते हैं, दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का ही होता है। आपका मेरा रिश्ता भी जरूरत और पैसे का है। परन्तु!–

पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिये हमारी हो जाती है, अपने सारे रिश्तों को पीछे छोड़कर वह हमारे हर सुख दुःख की सहभागी बन जाती है, वह भी आखिरी साँसों तक।

मैं अचरज से उसकी बातें सुन रहा था। वह आगे बोला- सर जी !! पत्नी अकेला रिश्ता नहीं है, बल्कि वो पूरे रिश्तों की भण्डार है।

जब वो हमारी सेवा करती है हमारी देख-भाल करती है। हमसे दुलार करती है तो एक *माँ* जैसी होती है।

जब वो हमें जमाने के उतार चढ़ाव से आगाह करती है, और मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूँ। क्योंकि जानता हूँ वह हर हाल में मेरे घर का भला करेगी। तब *पिता* जैसी होती है।

जब हमारा ख्याल रखती है हमसे लाड़ करती है, हमारी गलती पर डाँटती है, हमारे लिये खरीदारी करती है तब *बहिन* जैसी होती है।

जब हमसे नयी नयी फरमाइश करती है, नखरे करती है, रूठती है, अपनी बात मनवाने की जिद करती है तब *बेटी* जैसी होती है।

जब हमसे सलाह करती है, मशवरा देती है, परिवार चलाने के लिये नसीहतें देती है, झगड़े करती है तब एक *दोस्त* जैसी होती है।

जब वह सारे घर का लेन देन, खरीददारी, घर चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो एक *मालकिन* जैसी होती है।

और जब वही सारी दुनिमा को यहाँ तक कि अपने बच्चों को भी छोड़कर हमारे पास में आती है, तब वह *पत्नी, प्रेमिका, प्रेयसी, अर्धांगिनी, हमारी प्राण और आत्मा* होती है जो अपना सब कुछ सिर्फ हम पर न्योछावर करती है।"

मैं उसकी इज्जत करता हूँ तो क्या गलत करता हूँ सर। उसकी बातें सुनकर सेठ जी के आखों में पानी आ गया।
साभार