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मन की शांति..... मिलेगी कहीं?
कल रात हमेशा के जैसे मैं अपने रूम में बैठी पढ़ाई कर रही थी ...या यू कहूं पढ़ने की कोशिश कर रही थी

कोशिश इसलिए पता नहीं क्यों काफी दिनों से मन परेशान है बिना कोई रीजन के और दिमाग यह कहता है कि नहीं पढ़ाई पर ध्यान दो ..बस इसी दिल और दिमाग की कसम- कस के बीच आंखें थी ,कि जो लगातार फोन में खुली किसी पीडीएफ को देखे जा रही थी और हाथ उसे लिखे जा रहे थे ...पर मैंने क्या लिखा मुझे खुद भी नहीं पता

इसी बीच कमरे में आशीष आया अपने चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान लिए हाथ में फोन लेकर पता नहीं क्या देख रहा था

आकर उसने मुझसे कहा दीदी मैं अपने लिए ऑनलाइन शॉपिंग कर रहा हूं देख कर बताना इनमें से कौन सी शर्ट अच्छी है । मैंने बिना उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान दिए और अपने हाथों को बिना रोकते हुए ..उससे कहा मुझे नहीं पता तुझे जो चाहिए वह देख ले
लेकिन फिर भी उसने मुझे फिर कहा कि बता दो ना कौन सी अच्छी है ...इस बार मैंने थोड़े गुस्से से कहा मैंने कहा ना तो खुद देख ले तुझे जो अच्छी लगती हैं

पर शायद उसे ऐसा लगा कि मैं गुस्सा हुई क्योंकि उसने मुझे नहीं पूछा कि मुझे क्या चाहिए... तो इस बार उसने कहा कि दीदी अच्छा तुम बताओ तुम्हें क्या चाहिये
अभी भी मैं लगातार फोन में खुली पीडीएफ को देखते हुए लिखे जा रही थी
लेकिन मैंने शांत भाव से उत्तर दिया मुझे कुछ नहीं चाहिए ।
लेकिन उसका फिर वही सवाल कि बता भी दो क्या चाहिए , मैं मंगा कर दे दूंगा
मैंने फिर वही कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए मुझे परेशान मत कर..
लेकिन शायद भाई बन ही परेशान करने के लिए होते उन्हें यह कहो कि वह चीज नहीं करनी है वहीं उन्हें करनी होती है तो इस बार उसने मुझे तंग करने के लिए कहा था कि पक्का प्रॉमिस कि मैं तुम्हें जो चाहिए वह तुम्हें लाकर दूंगा

इस बार मैंने अपने लिखते हुए हाथों को रोका इस उम्मीद के साथ कि शायद जो मुझे चाहिए वह तो कोई भी नहीं दे सकता ...पर मेरे सवाल का जवाब जरूर मिल जाएगा
बस इसी उम्मीद के साथ मैंने कहा मुझे मन की शांति चाहिए ..मिलेगी कहीं ?

यह मेरी एक उम्मीद थी कि वह मेरे सवाल का जवाब दे सकेगा पर शायद उम्मीदें बनी ही टूटने के लिए होती है उसके पास कहने को कुछ नहीं था
मैं अभी भी उसे उम्मीद भरी नजरों से देख रही थी कि वह अभी कुछ बोलेगा शायद ..पर उसने कुछ नहीं कहा और अपनी नजरें नीचे झुका ली
शायद वह यह समझ चुका था कि मैं किसी से भी बात नहीं करना चाहती अकेली रहना चाहती हूं
और यही सब समझ कर और बिना कुछ कहे आशिष रूम से बाहर चला गया और मैं फिर अपनी टूटी उम्मीद ..दिल और दिमाग के बीच कशमकश को साथ ले फिर से लिखने में लग गई
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