...

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क्या ही लिखते हैं ...😏
कभी कल्पना, कभी हकीकत, कभी कोई चुभन ,कोई तकलीफ़ और
कभी कुछ सवाल लिखे जाते हैं। खुद को ही अजीब लगते हैं पढ़ने के बाद ...
कोरे पन्नों पर ये जो अनगढ़ ख्याल लिखे जाते हैं...

जाने मकसद क्या है इनको लिखने का ? बेनामी ,बिन पते के ये जो बिना सर पैर के पैगाम लिखे जाते हैं...?

क्या है भविष्य इनका...ये जो अनकहे अरमान , अनसुलझी पहेलियाँ, और ज़िंदगी के खट्टे - मीठे पाठ लिखे जाते हैं... ? किसके लिए है, जब अपने आप को ही कोई ख़ुशी, कोई नया अहसास नहीं दे पाते हैं ...

ये जो लबों की खामोशी, आँखों की नमी और दिल - दिमाग में उठते तूफ़ान लिखे जाते हैं.... क्या ठिकाना है इनका?

क्या ही लेना - देना है ज़िंदगी से इनका? बिना पते के ये जो पैगाम लिखे जाते हैं?

कभी–कभी लगता है सब बेकार ही है....फिर लगता है चलो बेकार ही सही...इस बेकार के बाद दिल को कुछ राहत तो ज़रूर मिलती है। कोई अनकहा सकून तो है जो लेखन में है, तभी तो दौड़ती- भागती ज़िंदगी में नींद और आराम का समय भी इसमें निवेश करने के बाद भी कोई पछतावा नहीं होता ... तो लेखन अपने मन का सकून है शायद! समाज और पाठकों के लिए उसके क्या मायने हैं ?? वो तो अक्सर बदल जाते हैं शायद ...!
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© संवेदना
#लेखन
#संवेदना_2023।