रिश्ते की पवित्रता
गुजरात के लिए तो नवरात्रि का उत्सव एक महापर्व के समान होता है। जिसके लिए बच्चे, युवा और वृद्ध सभी उत्साहित होते हैं।लगभग एक माह पहले से तैयारियां शुरू हो जाती है।
इसी क्रम में अहमदाबाद की राजल भी अपनी तैयारियों में व्यस्त थी। नौ दिन के अलग अलग कपड़े उनके साथ के गहने और मोजड़ी। एक एक दिन की तैयारी वह बड़े उत्साह से कर रही थी, जिसमें उसे चार चार दिन लग रहे थे, क्योंकि उसे पूरे गरबा पंडाल में अलग जो दिखना था! दिखे भी क्यों नहीं आखिर वह उस क्लब के अध्यक्ष श्रीमान् विरल जोशी जी की इकलौती बेटी जो थी।
धीरे धीरे सारी तैयारियां पूरी हो गईं। आखिरकार वो घड़ी आ ही गईं जिसके लिए इतने दिनों से तैयारियां चल रहीं थीं।
आज नवरात्रि का पहला दिन था। राजल उत्साहित तो सुबह से ही थी पर वह इस उत्साह को प्रदर्शित नहीं कर पा रही थी क्योंकि आज सुबह से ही वह रसोई में अपनी माँ हिरल बेन की मदद कर रही थी, क्योंकि गुजराती परंपरा के अनुसार आज घर में गरबा (गर्भदीप) की स्थापना होनी थी जिसके लिए प्रसाद बन रहा था।
लेकिन जैसे ही वह काम से निवृत्त हुई, उसका उत्साह घर के कोने कोने में दिखाई देने लगा। कभी वह अपने कपड़े निहार रही होती तो कभी गहने देख रही होती।
घड़ी में ८ बजते ही वह सफेद रंग का खूबसूरत पारंपरिक गुजराती परिधान पहने हुए गरबा पंडाल में जाने के लिए निकल गई, जो घर से ३० मिनट की दूरी पर था।
हर साल की तरह वहाँ ताली रास तो सामान्य ही हो रहा था, जिसमें राजल पूरे उत्साह के साथ गरबा कर रही थी। लेकिन राजल के उत्साह का रंग तब फीका पड़ गया जब उसे पता चला कि इस साल डांडिया रास की जोड़ियों के लिए थीम निर्धारित है, जिसके अंतर्गत आज डांडिया रास करने वाली सभी जोड़ियाँ भाई-बहन की होंगी।
इतना सुनते ही ताली रास को बीच में ही छोड़ कर डांडिया रास प्रेमी और पिछले ५ सालों से Best Steps Taker award पाने वाली राजल उदास मन से दर्शक दीर्घा में जा बैठी।
सभी ताली रास की मस्ती में थे, इस कारण किसी का ध्यान इस बात पर नहीं गया कि राजल ने रास छोड़ दिया है।
इधर राजल की आँखें तो मानो गंगा यमुना के जैसे बह उठीं, उसकी उदासी इस बात की थी कि वह इस साल नवरात्रि के पहले दिन ही डांडिया रास नहीं कर सकेगी क्योंकि उसको तो भाई ही नहीं है।
राजल इस विचार में इतनी गहराई तक डूब चुकी थी, कि उसे आस पास की कोई सुध नहीं थी।
इस बीच ताली रास खत्म हुआ और डांडिया रास के शुरू होने की घोषणा हो गई। लेकिन राजल पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा।
इधर सभी लोग व्याकुलता से क्लब की डांडिया क्वीन राजल विरल जोशी के मैदान पर आने का इंतज़ार कर रहे थे, लेकिन घोषणा को १५ मिनट हो चुके थे अब तक राजल का कोई पता नहीं था।
तब लोगों के आग्रह पर संचालक महोदय ने बड़े सम्मान के साथ राजल से मैदान पर आने का नम्र निवेदन किया। क्योंकि लोग उसके बिना डांडिया रास की शुरुआत नहीं करना चाहते थे।
कुछ लोग तो केवल उसके steps और style को देखने के लिए ही आए थे। लेकिन ऐसा लगा मानो राजल वहाँ हो ही नहीं क्योंकि mic जो पंडाल के चारों कोनों में लगे ४ speakers जिनमें से हर एक की sound coverage capacity लगभग २ किलोमीटर थी, से...
इसी क्रम में अहमदाबाद की राजल भी अपनी तैयारियों में व्यस्त थी। नौ दिन के अलग अलग कपड़े उनके साथ के गहने और मोजड़ी। एक एक दिन की तैयारी वह बड़े उत्साह से कर रही थी, जिसमें उसे चार चार दिन लग रहे थे, क्योंकि उसे पूरे गरबा पंडाल में अलग जो दिखना था! दिखे भी क्यों नहीं आखिर वह उस क्लब के अध्यक्ष श्रीमान् विरल जोशी जी की इकलौती बेटी जो थी।
धीरे धीरे सारी तैयारियां पूरी हो गईं। आखिरकार वो घड़ी आ ही गईं जिसके लिए इतने दिनों से तैयारियां चल रहीं थीं।
आज नवरात्रि का पहला दिन था। राजल उत्साहित तो सुबह से ही थी पर वह इस उत्साह को प्रदर्शित नहीं कर पा रही थी क्योंकि आज सुबह से ही वह रसोई में अपनी माँ हिरल बेन की मदद कर रही थी, क्योंकि गुजराती परंपरा के अनुसार आज घर में गरबा (गर्भदीप) की स्थापना होनी थी जिसके लिए प्रसाद बन रहा था।
लेकिन जैसे ही वह काम से निवृत्त हुई, उसका उत्साह घर के कोने कोने में दिखाई देने लगा। कभी वह अपने कपड़े निहार रही होती तो कभी गहने देख रही होती।
घड़ी में ८ बजते ही वह सफेद रंग का खूबसूरत पारंपरिक गुजराती परिधान पहने हुए गरबा पंडाल में जाने के लिए निकल गई, जो घर से ३० मिनट की दूरी पर था।
हर साल की तरह वहाँ ताली रास तो सामान्य ही हो रहा था, जिसमें राजल पूरे उत्साह के साथ गरबा कर रही थी। लेकिन राजल के उत्साह का रंग तब फीका पड़ गया जब उसे पता चला कि इस साल डांडिया रास की जोड़ियों के लिए थीम निर्धारित है, जिसके अंतर्गत आज डांडिया रास करने वाली सभी जोड़ियाँ भाई-बहन की होंगी।
इतना सुनते ही ताली रास को बीच में ही छोड़ कर डांडिया रास प्रेमी और पिछले ५ सालों से Best Steps Taker award पाने वाली राजल उदास मन से दर्शक दीर्घा में जा बैठी।
सभी ताली रास की मस्ती में थे, इस कारण किसी का ध्यान इस बात पर नहीं गया कि राजल ने रास छोड़ दिया है।
इधर राजल की आँखें तो मानो गंगा यमुना के जैसे बह उठीं, उसकी उदासी इस बात की थी कि वह इस साल नवरात्रि के पहले दिन ही डांडिया रास नहीं कर सकेगी क्योंकि उसको तो भाई ही नहीं है।
राजल इस विचार में इतनी गहराई तक डूब चुकी थी, कि उसे आस पास की कोई सुध नहीं थी।
इस बीच ताली रास खत्म हुआ और डांडिया रास के शुरू होने की घोषणा हो गई। लेकिन राजल पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा।
इधर सभी लोग व्याकुलता से क्लब की डांडिया क्वीन राजल विरल जोशी के मैदान पर आने का इंतज़ार कर रहे थे, लेकिन घोषणा को १५ मिनट हो चुके थे अब तक राजल का कोई पता नहीं था।
तब लोगों के आग्रह पर संचालक महोदय ने बड़े सम्मान के साथ राजल से मैदान पर आने का नम्र निवेदन किया। क्योंकि लोग उसके बिना डांडिया रास की शुरुआत नहीं करना चाहते थे।
कुछ लोग तो केवल उसके steps और style को देखने के लिए ही आए थे। लेकिन ऐसा लगा मानो राजल वहाँ हो ही नहीं क्योंकि mic जो पंडाल के चारों कोनों में लगे ४ speakers जिनमें से हर एक की sound coverage capacity लगभग २ किलोमीटर थी, से...