इश्क़ की ज़िम्मेदारियाँ
ज़िम्मेदारियों का बोझ मुझे सोने नहीं देता
कोई है मेरे अन्दर जो मुझे मेरा होने नहीं देता।
बेक़रारी बढ़ गई है इश्क़ में अब इतनी
उसकी यादों में दिल, आँखों को रोने नहीं देता।
तन्हाई ही अच्छी है...
कोई है मेरे अन्दर जो मुझे मेरा होने नहीं देता।
बेक़रारी बढ़ गई है इश्क़ में अब इतनी
उसकी यादों में दिल, आँखों को रोने नहीं देता।
तन्हाई ही अच्छी है...