...

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वजूद
मेरे जीवन की वो धुरी हो तुम जिसके चारों ओर समेट लिया है मैनें समस्त ब्रह्मांड..तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमती हैं मेरी सारी भावनाएँ...
कुछ अनकहे भाव..कुछ अधूरे से स्वप्न
जो अनायास ही ढ़ूँढ़ते रहते हैं अपना ठिकाना, और जैसे कभी स्वयं का वजूद तलाशने की तो कोशिश ही न की हो.
पर कभी-कभी महसूस होता है कि ढूंढना चाहिये था स्वयं का भी वजूद..टटोलनी चाहिये थी अपनी भी महत्वकांक्षा..बुनना चाहिये था अपना भी एक ख्वाब..जिसमें कैद होती अपनी असीमित भावनाएँ...हां कभी एक सफ़र तय करना चाहिये था..

स्वयं से स्वयं तक..!!

#अरु