...

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मुझे क्या पता
सूरज उगता है तो सवेरा होता है, ढलता है तो शाम होती है ।
पर मुझे क्या पता, मैंने तो सिर्फ तपन महसूस की है ।
फूल बड़े खूबसूरत होते हैं, पर मुझे क्या पता,
मैंने तो सिर्फ खुशबू महसूस की है ।
खूबसूरती और बदसूरती होती है, पर मुझे क्या पता,
मैंने तो सिर्फ तीखे और मधुर वचन सुने हैं ।
लोग कहते कैसी मृगलोचनी है, काश इसमें रौशनी होती ।
तुम्हें क्या पता मेरी आत्मा पर क्या बीती है ।
एक तो लड़की दूसरे नेत्रहीन, न होती तो अच्छा था ।
तुम्हें क्या पता मेरी माँ सुनकर कितना रोती है ।
लोग कहते कौन पूछेगा इस बदनसीब को,
तुम्हें क्या पता कितनी बार मैंने मरने की सोची है ।
पर कहानी यहीं कहाँ खतम होती है,
मोड़ आता है, कोई मेरा हाथ माँगता है,
मैंने सोचा कोई ख्वाब देखा है ।
एक दिन बारात आती है, और मेरी बिदाई हो जाती है ।
माँ बार-बार दूल्हे के सहृदयता बड़ाई करती है ।
मैं खुश हूँ, इतनी खुश कि लोगों की सारी बातें झूठी लगती है ।
यह हृदयहीन की बस्ती नहीं,
सहृदयता भी यहाँ बसती है ।
© Nand Gopal Agnihotri