नशे की रात ढल गयी-22
(22) शोले में जय ने वीरू की अगुवाई जिस अंदाज में की थी ,कुछ उसी अंदाज में 'अगुआ महाशय' ने मेरा खाका खींचा था । वह मेरे दोस्त थे और लड़कीपक्ष के करीबी भी । मगर खुशकिस्मती से मेरी शादी हो गयी । आज भी हमारे बीच जब कुछ अनबन होता है, तो पत्नी उन्हीं को कोसती हैं । यह कैसी विडंबना है कि अगुआ को अपयश के सिवा कभी श्रेय नहीं मिला ! खैर,अब तो काफी दिन बीत गये । यह चौतीस साल पूरानी बात है । जी हाँ ! बात उनदिनों की है जब मेरी नयी-नयी शादी हुई थी । उम्र के लिहाज से मैं कोई बच्चा नहीं था, लेकिन घर में माई और बाबूजी का मेरे साथ सलूक शुरू से अंत तक एक 'बबुआ' की तरह ही रहा। दफ्तर से आने में जरा भी देर हुई नहीं कि माई बाबूजी के कानों में शक की एक हल्की सी सुई चुभो देती--'ऐ सुनऽ तानी..बबुआ ना अइले ..' इसके बाद उनके मन में तरह-तरह की चिंताएँ आप-से-आप शुरू हो जातीं । रोज के अखबार में पढ़ी हुई वे तमाम बुरी खबरें उत्प्रेरक का काम करने लगतीं। सड़क दुर्घटनाओं से लेकर अपहरण तक की वे सारी घटनाएँ जो हाल फिलहाल के अखबारों में छपी होतीं , एक फ्लैश-बैक की तरह उनके दिमाग के स्क्रीन पर चलने लगतीं । घर...