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काशी
आज काशी आया हूं। सावन का पहला सोमवार है। इस बरस का सावन लंबा चलेगा, पूरे 59 दिन। पहले सोमवार की बात कुछ और ही है। बहुत सारे कावड़िए आ रखे हैं। केदार घाट से ही नारों और डमरू की आवाज से बाबा की नगरी गुंजाएमान है। यहां की डमरू का आकार और बजाने का तरीका थोड़ा अलग है।

गर्मी ज्यादा है। आज नाके बंदी हो रखी है जगह जगह। बहोत पदयात्रा करनी होगी, कम से कम 2 कोस। पर परवाह किसे, बाबा की भक्ति में सब लीन हैं। महादेव -- महादेव -- महादेव। कावड़ियों ने माहोल में जान डाल दी है। भागे जा रहे हैं जल भर कर। मैं भी गंगा स्नान किए लेता हूं। कुछ पाप धुल जाएं।

बनारस पहली बार आया हूं होस संभालने के बाद। काशी नगरी की क्या ही बात है। थोड़ा थोड़ा मेरे नानीघर बलिया जैसा लगता है। उसपर से मीठी सी भोजपुरी। का हो भईया का हाल बा। यहां की लस्सी और फिर कचौरी-सब्जी बड़ी स्वादिष्ट जान पड़ती है। पान भी खा कर जाऊंगा।
पर पहले दर्शन। खाली पेट जाना है मंदिर, मां का आदेश है।

मंदिरों में भीड़ बहोत होती है आज कल, ऊपर से सावन का पहला सोमवार हो और बाबा की नगरी का ज्योतिर्लिंग, तो क्या ही कहना। मंदिर जाने की लाइन ज्ञानवापी मस्जिद से होकर जाती है। मामला विवादित है और कचहरी में है, तो कुछ टिप्पणी नहीं करूंगा। विश्वनाथ कॉरिडोर, दर्शन के बाद विश्राम के लिए उपयुक्त है। अब जाकर प्रसाद और कचोरी खाएंगे।

कल नौकाविहार और घाटों की यात्रा करनी है। इस विषय में आगे चर्चा करूंगा........

© अंकित राज 'रासो'

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