...

3 views

कोई अपना
दोपहर का समय था एक बूढा आदमी चिलचिलाती धूप में पैदल राहों पर निकल पड़ा था उसे देखने वाला कोई भी ना था उसके चेहरे पर एक भावनात्मक छवि अंकित हो रही थी और वह किसी एक अपनी की तलाश कर रही थी मगर उसकी तलाश काश पूरी हो जाती है ऐसा उसे दिखाई नहीं दे रहा था। क्योंकि आज उनके बच्चों ने ही उन्हें घर से बाहर कर दिया था?

अभी वह कुछ दूर ही निकला था कि सामने से एक चमचमाती हुई गाड़ी सामने आ करके रुक गई। उसमें से 26 साल का एक युवक बाहर आया और उस बूढ़े आदमी के सामने दंडवत लेट कर प्रणाम करने लगा। उस बूढ़े आदमी को कुछ समझ नहीं आ रहा था वह आश्चर्य में था कि वह कौन हो सकता है किंतु उसने साहस बटोर करके उसी वक्त से पूछा अरे भाई तुम कौन हो?

उसी वक्त ने वही शख्स की आंखों में आंखें मिला कर के। अपनत्व के भावनाओं के साथ बोला मैं वही स्टेशन का भिखारी हूं।

बूढ़े बाबा ने दोनों हाथों से उसे उठाकर खड़ा किया और पूछा "अरे भाई तुम भिखारी कैसे हो तुम तो बहुत बड़े साहब लगते हो मेरे समझ में तो नहीं आता? कि तुम भिखारी हो सकते हो।"

युवक बाबा के दोनों हाथ पकड़े और प्रेम पूर्वक कहा "बाबा यह सब बात बाद में होगी चलिए पहले हम आपको घर ले चलते हैं आइए गाड़ी में बैठ जाइए" और उन्हें गाड़ी में बिठा कर अपने घर की ओर रवाना हो गया।

थोड़ी देर में गाड़ी एक खूबसूरत इमारत के सामने आकर के खड़ी हो गई। वह शख्स उन्हें घर के अंदर ले गया और एक चौकी पर बिठा दिया। और अपनी बीवी से मुखातिब होता हुआ बोला "अरे भाग्यवान देख क्या रही हो जाओ आरती की थाली लेकर आओ आज अपने घर भगवान हैं।"

बूढ़े शख्स आश्चर्य में थे घर के सभी लोगों ने आकर प्रणाम कर रहे थे और प्यार से बातें कर रहे थे मगर उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था इस बात को उस शख्स ने भाप लिया मुस्कुराते हुए "बाबा मैं वही स्टेशन का भिखारी हूं जिसे आपने पांच आने देकर यह कहा था कि एक का जब दो हो जाए तो ले आ कर देना। आपने ऐसा कहा कि मुझे अमीर कर दिया है इसीलिए आज भी मैं आपका ऋणी हूं।"

वह बूढ़े शख्स स्वयं ईश्वर चंद्र विद्यासागर थे और वह अमीर। बंगाल का मशहूर। आदमी बन गया था कल का भिखारी था।
© abdul qadir