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सुनो कहानी
"ऐसे कैसे हो सकता है एक राजकुमार की शादी चिड़िया से कैसे हो सकती है? नामुमकिन!"जैसे-जैसे बड़ी होती जा रही थी मैं कहानियों में लॉजिक ढूंढने लगी थी ।
जहां उनके बारे में प्रश्न पूछने में मुझे मजा आता था वहीं कहानी सुनाते हुए तारतम्यता के भंग होने पर नानी झुंझला जाती थी ।फिर भी थोड़ा सब्र करते हुए बताती थी कि बेटा ये तो एक कहानी है इसमें सब कुछ मुमकिन है।मैं फिर पूछती थी "अच्छा नानी राजकुमार जिसेअपने परिवार के कहने से ब्याह कर लाया था, उसे परिवार वालों से दूर एक अलग जगह क्यों रखा?
"राजकुमार नहीं चाहता था कि उसके माता-पिता का सर उनकी प्रजा के सामने झुके। इसीलिए उसने चुपचाप चिड़िया को एक अलग जगह रख दिया था।
लाल चुनर ओढ़े, गहने पहने चिड़िया दिन रात उस पिंजरे में फुदकती रहती थी, राजकुमार को मधुर गीत सुना उसकी दिन भर की थकन मिटा देती थी।"
नानी जैसे खुद को उस राजकुमार की चिड़िया समझ गुनगुनाने लगती थी।
"चिड़िया इतने सारे गहने पहन कर, पिंजरे में रह कर भी खुश कैसे रह सकती है, कैसे वो रात आने पर अपने राजकुमार को मीठे स्वर में गीत सुना सकती है ?? कितने प्रश्न नानी की कहानियों के बीच में मेरे मन से निकाल कर उनकी राह में आ खड़े होते थे।
नानी से कभी संतोष जनक जवाब नहीं मिला, या शायद मेरी उम्र नहीं थी ये समझ पाने की। कुछ बातें सच में उम्र के साथ ही समझ आती हैं ।
आज जब पिया के आगमन के इंतजार में आईना निहारती हूं और नजर भर पहने हुए गहनों को देखती हूं ,lतो चिड़िया का राजकुमार के लिए गाने का अर्थ समझ आता है।
"खैर अब राजकूमार क्या सारी उम्र एक चिड़िया के साथ रहेगा? वो उसे पिंजरा खोल उड़ा क्यों नहीं देता, क्यों रोज रोज उसके खाने पीने, आराम का ख्याल रखता है!" मेरे सभी प्रश्न जायज थे, जवाब भी देना बनता था। पर नानी मेरे प्रश्नों से परेशान हो कर बोली... "इस कहानी का अंत अब तुम खुद ही करो... जो तुम्हें अच्छा लगे वैसा ही बना लो"
"अब ये क्या बात हुई?"
ऊपर देखो , चांद ने आधा सफ़र तय कर लिया है। तुम तो सूरज उगते तक सोई रहोगी, मुझे तो अंधेरे मुंह जगना है। अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो ।"
मुझे लगता है नानी ने शायद मुझे सबक सिखाने को उस रात वो कहानी अधूरी ही रहने दी, वैसे शायद मेरे प्रश्नों ने वो कहानी उस रात पूरी न होने दी।

क्रमश:


© Geeta Dhulia