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कौआ

कौआ - नाम तो सुना ही होगा

नाम सुनते ही आँखों के आगे एक काला सा अजीब पक्षी दिखाई देने लगता है और साथ में कर्कश आवाज़ भी सुनाई देती है , और इतना ही नहीं मन में एक घृणा की भी उपज़ होती है - चालक , शातिर प्राणी वो भी कोई सकारात्मक स्वरुप में नहीं नकारत्मक स्वरुपमे

मुझे कौआ प्रिय है , पर कभी कभी सोचता हु वो सब को इतना अप्रिय क्यों है ? क्यों और कैसे हो गया ये भोला भाला पक्षी सब का अप्रिय ? [जी हाँ "भोला भाला" ]

वैसे तो शास्त्रों में उसे अच्छा पद मिला था , श्राद्ध के दिनों में पितृ तर्पण केलिए वो एक अभिन्न वाहक बनता है , जो श्राध्द वगैरह को मन में उतना नहीं मानते वो ये भी कहते है की उन दिनों कौए अंडे देते है और उनके आने वाले बच्चो के पालन की ख़ातिर हम उन्हें खाना देते है , दोनों में से जो भी बात माने , कम से कम इतना तो अवश्य कह सकते है की हमारे पूर्वजो को उनका महत्व पता था इसलिए उनका विशेष ध्यान रखते थे

पर इतना आदरणीय और अतिआवश्यक पक्षी कुछ वर्षो से इतनी उपेक्षा का पात्र कैसे बन गया ?

शायद जब हम काले गोरे का भेदभाव करना सीख गए तब से ऐसा होना शुरू हुआ होगा ?

शायद, नहीं , क्यों की काले गोरे के भेद से ऐसा होना हुआ शुरू होता तो कोयल भी इसी तरह अप्रिय होती , पर कोयल तो सब की प्रिय है , किसी की आवाज अच्छी होती है तब हम कोकिलकंठी बोलते है

तो एक को (कोयल को ) इतना सम्मान और कौए को इतना अपमानित स्थान हमारे मन में किसने पैदा किया ?

क्या इसकी वजह लेखक / कवी है या इसकी वजह उनकी आवाज है ?

"काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेद पिककाकयोः |
वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः ||"

(साधारण अर्थ कुछ इस प्रकार - कौआ काला , कोयल काली , कौए और कोयल एक जैसे ही है न !, तो क्या भेद / अंतर है कोयल और कौए में ?, जब वसंत ऋतु आती है तब पता चलता है , कौआ कौआ है और कोयल कोयल )

अब इस श्लोक से / में कौए के बारे में कुछ बुरा या अच्छा नहीं कहा , न ही कोयल के बारे में कहा गया है , पर इसका तात्पर्य हमें सीखाया जाता है की वसंत ऋतु में ही कोयल गाती है , मतलब की अपना मुँह खोलती है तो मीठी आवाज से पता चलता है की वो कोयल है , और ये सिखाया जाता है की , जब भी आप मुँह खोलते है सोच समझकर खोले , आपके बोलने से या बातो से आपका व्यक्तिव्त नजर आता है )

खैर ये भी बड़ी उटपटांग बात है , अब वसंत पंचमी में मुँह खोले या या नागपंचमी में कोयल की आवाज कोई भी ऋतु या दिन में मीठी ही लगेगी और उस हिसाब से कौए को किसी का चहिता बनना है तो आजीवन मौन व्रत धारण करना होगा

मीठी आवाज से कोयल को इतना प्यार देने वाले , ये भी नहीं जानते की वो मीठे गाने गानेवाली कोयल नहीं होती , कोयला होता है (मेरा मतलब मादा कोयल नहीं होती , नर कोयल / कोयला होता है )

दूसरा इतना सारा प्यार , अच्छा व्यक्तिव्त , अच्छा चरित्र पेश करने वाली कोयल , अपने बच्चो तक को पालना पसंद नहीं करती , वो अपने अंडे कौए के बनाए घोसले में देती है , और यहाँ तक ही नहीं शातिर कोयल वो "भोलेभाले कौए " के कुछ अंडो को तोड़ भी देती है या नीचे गिरा देती है , ताकि कौआ अंडे की गिनती करे तो ऐसा लगे की वो उसके अपने ही अंडे है , वो भोलाभाला कौआ अपने बच्चो की हत्या करने वाले के बच्चो को अपने बच्चे समझकर पालता है

कागवास में मिला खाना या कचरे की डिब्बे से उठाया खाना , या किसी मृत प्राणी का मांस लाकर अपने और कोयल के बच्चो को प्यार और ममता से खिलाता है

इतना मासूम , कर्मयोगी , ममत्व से भरा हुआ , भोलाभाला पक्षी कभी देखा है ? फिर भी ये कौआ आखिर इतना अप्रिय क्यों ?

पता नहीं

पर मुझे ऐसा लगता है , कौए से इंसानो को बहोत कुछ सीखना चाइये

१) लोग चाहे जितनी भी नफरत करे - प्यार और ममता फैलाते रहे

२) लोग आपको आपके स्वार्थ के समय अच्छा खिलाएंगे पिलायेंगे (जैसे पितृ तर्पण के महीने के बाद कौए को लोगो से दाने या खाना नहीं मिलता , मिलते है तो पत्थर और धुत्कार बाकि के समय कौआ अपना खाना या शिकार करके या जूठे खानो में से ढूंढता है ) - तो जिस समय लोग खिलाए खा ले , बाकि के समय लोगो के आगे पीछे घूमने की या खुशामत करने के बदले , अपने आपका ख्याल खुद रक्खे

३) आप की आवाज कैसी भी हो , चाहे लोग आपकी आवाज सुनकर पत्थर क्यों न मारे - गाने का मन हो तब दिल से और जोर से गाए , किसी का प्रिय बनने केलिए अपने अंदर के गवैए की या खुशियों का गला न घोटे , क्या पता ये सब करने के बाद भी आप सब के चहिते बने या न बने ? - एक
बात है आप सब के प्रिय नहीं बन सकते , पर आप अपने प्रिय बनकर अपना जीवन अपने हिसाब से जी सकते है , तो खुल के जिए , खुल कर गाए

४) कौआ हर पक्षी के साथ घुलने मिलने और साथ रहने की कोशिश करता है , चाहे दूसरे पक्षी उसे अपने गुट में शामिल करे न करे - जैसे की जहा चिड़िया या कबूतर केलिए दाना रक्का होगा वहा आपको कुछ कौए जरूर दिखेंगे , जहा फरसाण / हलवाई / नास्ते की दुकान के आसपास मैना दिखेगी वहाँ कौए भी साथ होंगे (मैना पक्षी की mimicry artist है वो हर पंछी की नक़ल करके आवाज निकालती है , उस तरह कौआ भी ऐसी कोशिश करता है , पर उसकी आवाज में खास बदलाव नहीं होता ), समंदर के किनारे उड़कर मछली पकड़ने वाले पंछी के साथ भी कौआ दीखता है , कभी कभी उस श्वेत पक्षी को लोग फेंक कर खाना खिलाते है और वो पक्षी हवा में ही खाना लपक लेते है , उस पक्षी के साथ भी आपको कुछ कौए जरूर दिखाई देंगे

५) "कुआ चला हंस की चाल ", कहावत सुनी होगी , कौआ हर किसी से कुछ न कुछ सिखने की कोशिश करता है , भले ही परिणाम अच्छा हो या बुरा , सिखने की ललक कौए की सब से अधिक होती है , आप सब कुछ कर सकते है , हर किसी से कुछ न कुछ सिख सकते है , जैसे ऊपर बताया , मैना की जैसे मिमिक्री आर्टिस्ट बनने की कोशिश , समंदर किनारे उड़ने वाले श्वेत पक्षी की तरह हवा में खाना खाने की कोशिश , उड़कर पानी में छलांग लगाने की कोशिश , ऐसी हर प्रकार की कोशिश कौआ अपने अस्तित्व को बचाने केलिए , अपने और अपने परिवार का निर्वहन करने केलिए करता है

और लोग ये भी कहते है "दुनिया में हर जगह कौए काले ही होते है " (वैसे अधिकतर सब प्राणी / पक्षी एक जैसे ही होते है -पर कुछ कुछ में भौगोलिक आधार पर बदलाव भी होते है ), तो आसपास परिस्थति कैसी भी हो , अपने आप को आप जैसे है वैसे बनाय रक्खे , Be You , Love Yourself , (आप आप के जैसे ही बने रहो , अपने आप से प्यार करो)
© a सत्य