...

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अल्फाज़ ...
कितना टूटा हूं बताऊं कैसे?
में ये दुनियां छोड़ जाऊं कैसे?
मेरे सपने मेरे अपने सब यहीं है मगर,
में ये जिंदगी अकेले बिताऊं कैसे?
कोई समझने को नहीं,
कोई गरजने को नहीं,
में खुद में ही सिमट कर,
मर जाऊं कैसे?
हालांकि कोशिशें उसकी भी की है,
मगर कच्चा सिपाही हूं
पक जाऊं कैसे?

कच्चा सिपाही हूं पक जाऊं कैसे?
वैसे भी मेरे मरने के बाद क्या ही बदलेगा?
वो सूरज पूर्व से ही निकलेगा और पश्चिम में ही डूब जायेगा
बैठ शायद ही कोई मुझे याद फरमाएगा
किसका?अपना मै,
कौन ही मेरे लिए आसूं बहायेगा?
कितना टूटा हूं बताऊं कैसे?
में जुडना भी चाहूं तो जुड़ जाऊं कैसे?
जिंदगी की किताब को खुली छोड़ जाऊं कैसे?
मेरे मरने के बाद शायद ही कोई मेरी बुराई के पुल बांधे
जिन्होंने कभी 2 पल बैठ ठीक से बात नही की
उनकी भी आंखों से आंसू निकल आएंगे
तारीफो में मेरे नाम के फूल सजाए जायेंगे
कितना टूटा हूं बताऊं कैसे?
में खुद भी मरना चाहूं तो मर जाऊं कैसे?
समय सबका आया है
मेरा भी आएगा
और एक दिन मेरी गुप्त जिंदगी का राज
इन्ही पंक्तियों से खुल जायेगा।
कितना टूटा हूं बताऊं कैसे?
में ये दुनिया छोड़ जाऊं कैसे?




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