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आत्म संगनी की छलनी आत्मा
आज अनायास ही मुझे आत्म संगनी ने अपने ज़ख्म दिखाए,में कल्पना भी कर पाया की हंसती खिलखिलाती एक खूबसूरत लड़की के अंदर इतना दर्द भी होगा।।उसकी लहू लुहान आत्मा की चादर पर अत्याचार के ज़ख्मों से रिसता लहू उसकी अंतरात्मा को किस प्रकार कचोक रहा होगा।
आज अरसे बाद जब वो मेरे आगोश में आई तो अचानक एक दर्द,एक तकलीफ के साथ आलिंगनबद्ध हुई। पहले तो बात को टालती रही मगर जब उसने अपने ज़ख्मों की नुमाइश की तो मैं दहल गया।उसका गुदाज मखमली जिस्म लहू लुहान था। उसके जख्मों से रिसता खून उसकी तकलीफ को चीख चीख कर बयान कर रहा था।y
उसकी तकलीफ गवाही दे रही थी उस पर हुए जुल्म की।उसके जिस्म पर उभरे हुए ज़ख्म उसकी बेबसी को बयान कर रहे थे। यह सब देख कर मेरी आत्मा विचलित हो गई। मुझे अहसास हुआ एक औरत किस प्रकार पुरुष सत्तात्मक समाज में असहाय,कमजोर हो जाती है। विकृत मानसिकता का परिचय देने वाला पुरुष आज भी महिला को पेरो की जूती ,दासी या पुरुष पर आश्रित एक अबला से ज्यादा नही मानता। जलता है उसकी कामयाबी से उसे डर रहता है औरत की तरक्की से,उसको समाज में मिले सम्मान से। पुरुष की गंदी मानसिकता का परिणाम है कि आज की नारी लिखी पढ़ी होकर पर केवल इस लिए उस पर आश्रित है क्योंकि वह उस मन मंदिर में भगवान मानकर बसाए रखती है, उसे पता है पुरुष के बगैर समाज रूपी जंगल में उसको किस किस परेशानी का सामना पड़ेगा। यही कारण है कि अपने शरीर से बहते खून को पोंछ कर वह एक नई उम्मीद के साथ फिर से अपनी गृहस्थी समेटने लगती है ,भूल कर अपने जख्मों को।

सलाम तेरी चाहत को
© SYED KHALID QAIS