...

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तुम में ही।
शोर की अपनी ही खामोशी होती है
ये वही सुन सकता है जिसे उसनेे चुना हो

बहुत धीमी ,बहुत मीठी होती है
कभी तलाशना इसे
तुम में ही है

झांकना कभी
गहराइयों में खुद के

रंगों की मिनारें मिलेंगी
कच्ची फलियों सी सुगंधित
खुबसूरत
तुम में ही है

एक सुकून सी बहती हवा
ताजी पत्तियों से आती हुई
जैसे हल्की धडक
या झींगुर के स्वर
अद्भुत
तुम में ही है

कुछ प्रश्न हो तो
कह कर देखना
हल मिलेगा
सचमुच
तुम में ही है

ऐसा लगेगा जैसे
तुम सदियों से जानते हो जिसे
बस कुछ धुंधली सी दीवार थी
बीच में कहीं
पट गयी
सुलझ गई
कहीं कोई खाई नहीं
बस मैदान ही मैदान है
और तुम दौडे जा रहे हो
तुम्हारे हर पग से
जीवन और सुखद
सुंदर हो रहा है
मनोहर
तुम में ही है

ये आनंद शांति सुख सुकून
सब कुछ बस
तुम में ही तो है।





हे केशव तुम खुशबू मेरे
फुल मैं तेरी बगिया की
राधा मीरा गोपियों जैसी
मैं तेरे दरस की बस प्यासी
हे केशव।

© geetanjali