दर्द मजदूरों का..
तपती धुप में दिन रात चल कर..
पैरों में छाले पड़ गये..
फिर भी न रुके कदम...
मीलों का सफर तय करने में चप्पल घिस गये
फिर भी घर जाने की चाह खत्म न हुई और कदम आगे बढ़ते ही गये
माँ बच्चो को गोद में लिए...
सीने से लगा कर...
हर मुश्किल खुद झेल रही है...
साथ में सामान का भोज लिए...
चले जा रहे है...
भूख और प्यास को...
पैरों में छाले पड़ गये..
फिर भी न रुके कदम...
मीलों का सफर तय करने में चप्पल घिस गये
फिर भी घर जाने की चाह खत्म न हुई और कदम आगे बढ़ते ही गये
माँ बच्चो को गोद में लिए...
सीने से लगा कर...
हर मुश्किल खुद झेल रही है...
साथ में सामान का भोज लिए...
चले जा रहे है...
भूख और प्यास को...