...

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दर्द मजदूरों का..
तपती धुप में दिन रात चल कर..
पैरों में छाले पड़ गये..
फिर भी न रुके कदम...
मीलों का सफर तय करने में चप्पल घिस गये
फिर भी घर जाने की चाह खत्म न हुई और कदम आगे बढ़ते ही गये
माँ बच्चो को गोद में लिए...
सीने से लगा कर...
हर मुश्किल खुद झेल रही है...
साथ में सामान का भोज लिए...
चले जा रहे है...
भूख और प्यास को मारते हुए..
जिस तरह सूर्य की किरणें उन्हें जला रही हैं उसी तरह वो और आगे बढ़ रहे हैं,एक धुन सी सवार है उनमें घर जाने की
तपती धूप में भूख प्यास से तड़प रहे हैं फिर भी हार नही मानते
बार बार माथे के पसीने को गमछे से पोंछ रहे हैं और मुश्किल समय को अपने जूनून के सामने नहीं टिकने दे रहे हैं
कोई आधे राह में दम तोड़ दिया तो कोई सफ़र पूरा होते होते दम तोड़ दिया और कुछ बचे लोगों को भुखमरी ने मार दिया
इस कदर भी लोग सोते मिलेंगे कभी सोचा न था
गरीब भूख से तड़पता ट्रैन के सामने आकर अपनी जान दे देंगे इस बात का अंदाज़ा ना था
बंद कमरों में बैठे अमीर गरीबों का हाल क्या जाने
जिस भारत में गरीबी मिटाने के सपने देखते हैं लोग आज दर्द से चीख रहे हैं
खुदा का कहर ऐसा भी आता है हर दर्द क्यों गरीब को ही सहना पड़ जाता है
अमीरों को हवाई यात्रा का सुविधा दिया जाता है और गरीबों को घर पहुंचाने के लिए बस ट्रक की सुविधा भी नहीं दिया जाता है
ज़िन्दगी गर्दिश में होगी ये न सोचा था कभी और समय ने दिखा दिया
©Noor-e-huma