...

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कुछ तो है....
अब यह शहर खामोश रहता है ,
क्योंकि, शायर खुद खामोश रहता है ।
अब नहीं कहता खुद की बातें अपने यारों से भी जिनको एक बार आवाज देने पर मेरी बातों की कीमत का कोई असर नहीं होता है,
पहले अक्सर मैं हर बात पर एक अच्छी राय देता था,
खुशियां हो या गम हर वक्त उनकी ढाल बनकर खड़ा रहता था ,
पर शायद उन्हें ऐसा लगता था कि मैं कुछ हूं ही नहीं बस यूं ही गांव का एक बिछड़े हुआ लड़का हूं,
जो आज उनकी बातों पर आवाज दे रहा है
ऐसा कर अक्सर वह मुझे शर्मिंदा कर देते थे ,कहते कुछ नहीं थे ऐसा मगर अनसुना कर ऐसे बहुत से जख्म देते थे ,
मैं खामोशी के साथ कई बार आंसुओं को गटक लेता था चुप...