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मौन
एक बार एक जंगल में एक व्यक्ति पेड़ पर चढ़ कर लकड़ियां काट रहा था । वहीं एक व्यक्ति अपनी भेड़ें चरा रहा था । अचानक ही भेड़ों के मालिक को एक बात याद आ गई जो कि घर में पत्नी से कहनी बहुत जरूरी थी । चरवाहा बहरा था पर बोल सकता था । चरवाहा लकड़ी काटते हुए के पास जाकर कहने लगा कि भाई , जरा मेरी भेड़ों का ख्याल रखना जरूरी काम आन पड़ा है, घर जाना बेहद जरूरी है । मैं भागता हुआ जाऊंगा और वापिस आऊंगा , आप मेरी भेड़ों का ख्याल रखना । वह लकड़ी काटने वाला भी बहरा था , उसे समझ नहीं आई , उसने समझा कि भेड़ वाला कह रहा है कि नीचे आओ , थोड़ा आराम करलें , थोड़ी बातचीत करलें । उसने जवाब दिया जा भाई अपना काम कर , मेरे पास इतना समय नहीं।
भेड़ों के मालिक ने समझा कि कह रहा है कि जाओ , मैं ख्याल रख लूंगा । और भेड़ों का मालिक चला गया अपने घर और फिर वापिस आ गया । उसने भेड़ों की गिनती की । भेड़ें गिनती में पूरी थीं । सोचता है कि ये लकड़ियां वाला बंदा भला बंदा है ईमानदार है । मेरी भेड़ों का ख्याल रखा है इसने । फिर सोचता है कि इसे एक भेड़ इनाम में दे देता हूं । उसकी भेड़ों में एक भेड़ की टांग खराब थी । उसने उसी भेड़ को गोद में उठा लिया और पहुंच गया पेड़ के नीचे । उसने लकड़ी काटने वाले की तरफ देखा और बोला कि भाई धन्यवाद , आपने मेरी भेड़ों का ख्याल रखा । यह लो भाई एक भेड़ आपको धन्यवाद स्वरूप दे रहा हूं , इसे स्वीकार कर लो । लक्कड़ काटने वाले ने समझा कि शिकायत कर रहा है कि भेड़ लंगड़ी कैसे हो गई । लकड़ी काटने वाले ने कहा कि भाई मैं तो नीचे उतरा ही नहीं मैं कैसे आपकी भेड़ की टांग को खराब कर सकता हूं । वह नीचे उतर आया और उनकी बात बड़ गई । एक कह रहा कि भेड़ रख लो इनाम है । और एक कह रहा है कि मैने भेड़ को हाथ भी नहीं लगा , कैसे हो गई लंगड़ी ।
तभी वहां से एक महात्माजी गुज़र रहे थे । दोनों अपना फैसला करवाने के लिए उनके खड़े हो गए । दोनों ने अपनी अपनी बात कही । यहां भी एक समस्या खड़ी हो गई । महात्मा जी ने मौन धारण किया हुआ था , बोल नहीं सकते थे ।।
मौनी व्यक्ति कैसे बोले । महात्मा जी दोनो का मसला समझ तो गए पर हल कैसे करें । महात्मा जी ने भेड़ों के मालिक की आंखों की तरफ देखा , बिना पलक झपकाए देखा । भेड़ों का मालिक घबरा गया । सोचता है पता नहीं कोई जादू ही न कर रहा होए । उसने झट से अपनी भेड़ों को हांकता हुआ भाग चला । फिर महात्मा जी ने लकड़ी वाले की और देखा तो वह भी घबरा गया । उसने भी भागने में ही भलाई समझी ।
महात्मा जी ने दोनो का मसला हल कर दिया बिना कुछ बोले । सभी महापुरुषों को इसी समस्या ने घेरा हुआ है । वे बोलते हैं पर सुनता कोई नहीं । इसी लिए महात्मा जी आंखो का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं ।
कभी किसी भी सत्संग में जाओ तो देखना कि महात्मा जी आंखो ही आंखो में सभी को कुछ न कुछ संदेश देते हैं । पर कुछ ही समझते हैं ।
धन्यवाद । ( ओशो जी की पुस्तक एक ओंकार सतनाम ) में से इस प्रसंग को लिया ।