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क्यों पत्थर दिल हो जाता है इंसान
वैसे क्यों पत्थर दिल हो जाता है इन्सान क्या आप बता सकते हैं ,शायद नहीं बता सकते क्योंकि पत्थर दिल इन्सान खुद नहीं बनता बना दिया जाता है।
ये भी इसलिये होता है क्योंकि वो जैसा व्यवहार और लोगों के साथ करते हैं वैसे ही व्यवहार की
उम्मीद अपने आप से भी रखते हैं।
वैसे ऐसा होना नहीं चाहिए।क्योंकि सभी का स्वभाव अलग अलग होता है।
ये बात भी आप पर निर्भर करती है आपको औरों के साथ कैसा व्यवहार करना है।
ये जरूरी भी नहीं जैसा हम दूसरों के बारे में सोचते हैं सामने वाले भी वैसे ही सोचेंगे।
कई लोग तो ये भी सोच रखते हैं,सामने वाले का
स्वभाव कैसा भी हो एक न एक दिन तो ह्रदय परिवर्तन होगा ही।
या फिर सोचते हैं हमारी करनी
हमारे आगे।उनकी करनी उनके आगे।
जैसे कर्म करेंगे वैसे ही तो फल देंगें भगवान।
ऐसा होता भी है समय अपनी करवट बदलता जरूर है।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
इन्सान की सोच भी पत्थर दिल इंसानों की तरह ही हो चुकी होती है।
इन्सान कितना भी अच्छा क्यों न हो उसके मन में
एक शंका रहती है।
कहीं इस इन्सान का स्वभाव भी वैसा ही हुआ तो।
परिस्थितियों से जूझते इन्सान अपने आप में परिवक्य हो चुके होते हैं।
अपनी परिस्थितियों को देखते हुए ही फूँक फूँक
कर कदम रखते हैं।
इस वजह से भी लोग उन्हें पत्थर दिल इंसान कहते हैं।
अक्सर देखा जाता है जिनकी शादियाँ टूट जाती हैं
वो दूसरी शादी करने से भी घबराते हैं।
ऐसा सिर्फ उन्हें तजुर्बे जो शादी में मिले होते हैं इसलिए होता है।कई बार उनकी धारणा गलत भी निकलती है दूसरी शादी से जीवन सँवर जाता है।
वैसे हमारा मानना है हर इन्सान में अच्छाई बुराई दोनों होती हैं।शादी एक ऐसा बन्धन है जिसमें हमें सामने वाले या वाली को ही नहीं व्यवहार को भी अपनाना पड़ता है।लेकिन आधुनिकता के इस युग में लोगों की सोच में
दूरदर्शन धारावाहिकों ने लोगों के विचारों में बड़े परिवर्तन लाए है।
एक ही इन्सान की तीन तीन चार चार शादियाँ दिखाई जाती हैं।सास भाभी नन्दों के झगड़े
भी दिखाए जाते हैं।जो इन्सान के अच्छे स्वभाव में
भी परिवर्तन ले आते हैं।
क्यों नहीं हमारा समाज लोगों के प्रति अच्छे दृष्टिकोण रखते हैं दूरदर्शन या फिर सोशल मीडिया में अच्छे दृष्टिकोण दिखाएँ ताकि लोग प्रेरित हो अपने स्वभाव में परिवर्तन लाए।
वैसे किसी के स्वभाव में हम आप कोई परिवर्तन नहीं ला सकते।इन्सान को अपने स्वभाव में खुद ही
परिवर्तन लाना होगा तभी हम ही नहीं हमारा देश भी सम्रद्ध और खुशहाल बनेगा।
हमें किसी पे अपना प्रभाव डालने के लिए कार्य नहीं करना है।हमे अपना व्यक्तित्व सजाने के लिए
कार्य करना है।भावनाएँ अपनी तो लेकर चलना ही है किसी की भानाओं को हमारी बातों व कृत्यों से किसी को ठेस न पहुँचे ऐसे कार्य करने हैं।
अगर हर व्यक्ति इतनी सी बात समझ ले तो किसी के स्वभाव में परिवर्तन ही न आए।
कोई इन्सान पत्थर दिल न बने।
सभी एक दूसरे की भावनाओं को समझेंगे।
किसी की सौ अच्छाई लोग याद नहीं रखते।एक छोटी सी बुराई का लोग तिल का ताड़ बना पेश कर अपने अहम को भी बढ़ावा देते हैं।
समझ नहीं आता आखिर क्यों करते हैं लोग ऐसा।
क्यों लोग भूल जाते हैं।
पैसा रुतबा सब यहीं तो रह जाना है।
हमारी प्यार भरी बोली व व्यवहार ही अनमोल खज़ाना है।इसी अनमोल ख़ज़ाने से ही तो हमें पहचाना जाना है।
© Manju Pandey Choubey