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सुबह का भूला
सुधा और शेखर, कोर्ट की कैंटीन में आमने सामने टेबल पर चुपचाप बैठे हुए थे! कुछ ही देर में तलाक की अर्ज़ी पर अंतिम कार्यवाही होने वाली थी, आख़िरी बार दोनों को इस विषय पर विचार करने के लिए कुछ देर का समय दिया गया था! सुधा विचारों में खोयी शेखर की कलाई पर बंधी घड़ी की तरफ़ देख रही थी जो उसने शादी की पहली सालगिरह पर शेखर को दी थी, समय कितनी जल्दी बीत गया, और जाने कितनी ही ख़ुशियों को निगल गया, सभी के जीवन संवारती, उनकी परेशानियों को पल में हल कर देने वाली अमृत-सी सुधा, अपने जीवन के ज़हर को कम नहीं कर पा रही थी, और खुशियाँ हाथों से फिसल कर कोर्ट तक आ पहुँची हैं!

छोटी सी बात पर हुई अनबन से मायके गयी सुधा, कभी लौट न सकी, वो शेखर की पुकार का इंतज़ार करती रही और शेखर उसके कदमों की आहट का, इसी ऊहापोह में दरार खाई बन गयी और परिणामस्वरूप, घर की चारदीवारी से रिश्ते तलाक़ तक आ पहुँचे !

शेखर भी सोच रहे थे कि क्यों नहीं उसने ख़ुद एक बार भी सुधा को आवाज़ दी, कितना कुछ उसने शेखर की बहनों और भाई के लिए किया था, सबकी आर्थिक और पारिवारिक स्थिति सुधार कर, अपना नाम सार्थक किया था, सभी के जीवन के ज़हर को अमृत में बदल दिया था, आज सभी ख़ुश हैं, सिवाय सुधा और शेखर के! अचानक से दोनों वर्तमान में लौट आये, नज़रें मिली, दोनों की आँखों में रुक जाने की बात और प्यार की पुकार थी, दोनों एक दूसरे से आज भी बहुत प्यार करते हैं, आँखों में दिख रहा था, पहले ही बहुत देर हो चुकी थी, और देर न करते हुए शेखर ने थोड़ी हिचक के साथ सुधा का हाथ पकड़कर कहना शुरू किया, "सुधा, रुक जाओ, मुझे छोड़ कर मत जाओ, मैं तुम्हारे बिना बहुत अकेला हूँ, तुमसे अलग होकर नहीं रह पाऊँगा, मुझे माफ़ कर दो! मैं आज भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ!" इतना कहते शेखर बच्चे की तरह सुधा के हाथों में अपना मुँह छिपा कर बच्चों की तरह बिलख रहे थे! सुधा भी कहाँ उनसे कभी एक पल को भी अलग हुई थी, प्यार तो उसके दिल में भी शेखर के लिए बेइंतेहा था, उसकी सुंदर गोल आँखों से आँसू ढलक कर, उसके ग़ुलाबी रुख़सारों से होते हुए शेखर के हाथों को छू गए !

सुधा ने भी शेखर के हाथों को कस कर थामते हुए कहा," मैं भी तुमसे कभी अलग नहीं होना चाहती, शेखर के बिना सुधा कुछ नहीं है, मुझे माफ़ कर दो शेखर! मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ!"

दोनों की बातों से सारे गिले शिकवे मिट गए थे, गलतफहमियों के बादल छंट चुके थे! शेखर ने खड़े होकर सुधा को गले लगा लिया, सुधा भी शेखर के सीने में जैसे सिमट जाना चाहती थी! शेखर ने तलाक़ के काग़ज़ फाड़ दिये, अपना जीवन अमृत करने, सुधा को अपने साथ लेकर घर की ओर चल दिये! दोनों अपने मन में सोच रहे थे कि बस इतना सा ही करना था, एक आवाज़ ही तो देनी थी, क्यों न पुकार सके? कुछ शब्द जीवन को नये सवेरे और रोशनी देते हैं, झुकने में कोई बुराई नहीं!

आज सुधा बहुत ख़ुश थी, जिस दिन पहली बार शेखर का हाथ थामा था, उससे भी ज़्यादा ख़ुश, ऐसा लग रहा था जैसे आज वह पहली बार शेखर की दुल्हन बनी है, शेखर का हाथ थामे, साथ चल रही थी, आँखों में जीवन में सबकुछ पा लेने की चमक और होंठों पर कभी न मिटने वाली मुस्कुराहट थी!


© सुधा सिंह 💐💐