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सुबह का भूला
सुधा और शेखर, कोर्ट की कैंटीन में आमने सामने टेबल पर चुपचाप बैठे हुए थे! कुछ ही देर में तलाक की अर्ज़ी पर अंतिम कार्यवाही होने वाली थी, आख़िरी बार दोनों को इस विषय पर विचार करने के लिए कुछ देर का समय दिया गया था! सुधा विचारों में खोयी शेखर की कलाई पर बंधी घड़ी की तरफ़ देख रही थी जो उसने शादी की पहली सालगिरह पर शेखर को दी थी, समय कितनी जल्दी बीत गया, और जाने कितनी ही ख़ुशियों को निगल गया, सभी के जीवन संवारती, उनकी परेशानियों को पल में हल कर देने वाली अमृत-सी सुधा, अपने जीवन के ज़हर को कम नहीं कर पा रही थी, और खुशियाँ हाथों से फिसल कर कोर्ट तक आ पहुँची हैं!

छोटी सी बात पर हुई अनबन से मायके गयी सुधा, कभी लौट न सकी, वो शेखर की पुकार का इंतज़ार करती रही और...