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बरामदे की रौनक
हम उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर शाहजहांपुर मे रहते हैं जहा हमारा एक प्यारा सा घर है और उस घर की रौनक है वो बरामदा जहा है एक यादगार डाइनिंग टेबल और वो चार कुर्सियां जो हमे याद दिलाती है हमारे स्वर्गीय पिता जी की जिन्होंने एक सरकारी बैंक में क्लर्क की नौकरी कर यह बरामदा अपने पैसों से सजाया और अपने सपनो का एक घर बनाया जिसकी रौनक थी यह पुरानी डाइनिंग टेबल और कुर्सियां जिसपे बैठ कर वो खाया करते थे उसी बरामदे हमारा बचपन बीता और देखते देखते जिंदगी के तीस बत्तीस वर्ष इसी बरामदे में गुजर गए इससे पहले तो हमारे पिता जी किराए के मकान मे रहते थे इस घर में आकर जन्म हुआ मेरा और मेरे पिता के खुद के बनाए इस आशियाने में जन्मा मै और इस बरामदे की रौनक अब मैं बन गया था जहा मेरे पिता की गोद में गुजरा मेरा वो यादगार बचपन ,धीरे धीरे वक्त गुजरता गया और पिता जी को बच्चो के पालन पोषण और शादी ब्याह की चिंताओं ने घेर लिया और वही एक मात्र सहारा उनकी वो सरकारी बैंक के लिपिक की नौकरी के और उसी के सहारे बच्चो का पालन पोषण शादी ब्याह करते करते उन्हें साथ में घेर लिया मधुमेह ने और मेरी शादी और मेरे सेटलमेंट के पहले ही उनका स्वर्गवास होगया और तब से उस बरामदे की रौनक बनी उनकी वो तस्वीर जिसे हटाते ही आज भी लगने लगता है जैसे कुछ नही रहा सच में उस तस्वीर में इतनी शक्ति है जो मुझे आज भी अहसास दिलाती है उनके साथ में होने का और याद दिलाती है उनकी जोड़ी हुई वो डाइनिंग टेबल और चार कुर्सियां उनके होने का जिस पर बैठ के हम साथ में कभी खाया करते थे जहा मेने उनकी गोद में बैठ के खाना खाना सीखा था सच में यह यादें भी कितना सुकून देती है
पिता के जाने के कुछ वर्षो के बाद ही मेरा भी व्याह हो गया और अब हमारे आंगन में एक नन्हा बच्चा फिर से हमारा बचपन वापस लेकर आगया और अब इस बरामदे की रौनक है हमारा ये लाल जो पालने में झूलता है अब तो इस बरामदे की रौनक और भी बढ़ गई और अब भी हमे आशीर्वाद देने वाली है वोही हमारे पिता जी की तस्वीर जो हमे खुश देखती है हमारी मां और मेरी पत्नी और हमारे प्यारे से बच्चे के साथ और शायद जहा कही भी होंगे वो खुश होते होंगे देख के हमारे प्यारे से बरामदे की रौनक आज भी उन्ही के आशीर्वाद की देन है