ग़ज़ल
हुए मग़रूब दिल माह ए जबीं की सुर्ख़ आँखों में,
जो पाया अहल ए बस्ती दिल लिए थे अपने हाँथों में।
हँसी पे उसकी कितनों ने ख़ुदी को वार डाला था,
था उसके नाम का गिरया न जानें कितनी आँहों में।
अजब दस्तूर था उसके शहर में बात करने का,
जहाँ देखो वहाँ हर जाँ उसी की...
जो पाया अहल ए बस्ती दिल लिए थे अपने हाँथों में।
हँसी पे उसकी कितनों ने ख़ुदी को वार डाला था,
था उसके नाम का गिरया न जानें कितनी आँहों में।
अजब दस्तूर था उसके शहर में बात करने का,
जहाँ देखो वहाँ हर जाँ उसी की...