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जड़ें और ज़िंदगी
उसकी उम्र बारह या चौदह साल होगी। मुझे ठीक से याद नहीं, कभी कभी चीजों को, तारीखों को याद रखना इतना जरूरी नहीं होता बस ये याद है एक बार मेरी पड़ोसन ने पूछा था कौन सा पौधा है ये बहुत सुंदर फूल देता हैं तब से अब तक बात को आठ या दस साल बीत गए। तो अमूमन उतनी ही उम्र होगी उसकी। आज भी मेरी छत पर एक बड़े या कहूँ घर के सबसे बड़े गमले में वो और बड़ा हो रहा है। जड़े इतनी बड़ी हो गयी है कि अब मिट्टी से बाहर आने लगी है और वो गमला भी उस पौधे को छोटा पड़ने लगा है। ठीक वैसे जैसे इंसान जब बड़ा होता है तब उसे खुद के हिस्से की ज़मीन या इस दुनिया में एक छोटा सा कोना चाहिए जिसे वो घर कह सके और बाकी की ज़िंदगी उसी ज़मीन पर अपनी जड़ें सुकून से फैला सके।
कभी कभी मुझे लगता है एक लड़की का शादी करना ठीक उसी एक पौधे की तरह है, जिसे उसकी जड़ों से उखाड़ के किसी और के आंगन में लगा दिया जाये। और फिर उससे कहा जाये ये अब तुम्हारी ज़मीन है इस ज़मीन को जकड़ के जड़ों को इस तरह फैलाना की तुम्हें कोई इससे से अलग न कर सकें।
पर क्या कोई यकीन के साथ कह सकता है जो पौधा किसी के छज्जे पर रखे एक छोटे से गमले में फूल दे रहा हो वो किसी की गीली या सुखी ज़मीन पर उसी तरह फल जाएगा। शायद समय लग जाये शायद ज़मीन इतनी सख्त हो कि जड़े ही न फैले या इतनी गिली की पौधा खड़ा ही न हो पाए बार बार गिर जागे। कुछ पता नहीं है ना तो फिर इतनी उम्मीद क्यों ।
सब को ज़िन्दगी चाहिये ये जद्दोजहद बस इसी लिए तो है एक नन्हा बीज बीज भी जल्द से जल्द अपनी जगह बनाना चाहता है
तो चौदह सावन देख चुके उस पौधे की भी तो अरमान कुछ कम नहीं होंगे उसे भी तो अपने हिस्से की ज़मीन चाहिये होगी।
पर अगर उस ज़मीन में नमी नहीं और वो पौधा सुख गया तो उसकी क्या गलती।
© maniemo


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