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आत्म संगनी का आत्म विश्वास
यूं तो हमारी कहानी को अब तीसरा वर्ष गुजर रहा था,इस अंतराल में हमारे बीच की मधुरता ,निजता,हमारा समर्पण इस हद्द तक बढ़ गया था कि हम एक दूसरे से बिना बात किए रह नही पाते थे। उसका मेरी जिंदगी में बढ़ता प्रभाव अब किसी से छिपा हुआ नही था। दुनिया की फिक्र से दूर हमारे बीच स्थापित संबंध सारी कायनात में सबसे अनमोल बन गया था।
मेरी जिंदगी में अदृश्य ही सही कुछ बालाओं का आना उसको नागवार गुजरता था,एक अर्धांगनी की भांति उसका मेरे जीवन में किसी भी महिला का आभास मात्र ही उसको उद्वेलित कर जाता था। उसका मुझ से रूठ जाना ,लड़ना झगड़ना मुझे आनंद देता था।
साल के आखिरी सप्ताह में उसका जन्मदिन था और में पिछले वर्ष की भांति भूल गया था,ओर वह इसी आशा में रात भर जागी कि उसके जन्मदिन की पहली बधाई मैं देता,लेकिन मैं निकम्मा इसमें चूक कर गया ,नतीजा मेरी आत्म संगनी का पारा सिर पर चढ़ गया,यह साल का दूसरा वज्रपात था जो मैंने झेला,यूं तो साल की शुरुआत ही उसके भयंकर गुस्से का शिकार होकर हुई थी,ओर हर बार की तरह मैंने उसे पुचकार कर अपनी काल्पनिक जिंदगी में उसको आलिंगनबद्ध कर मना लिया और वह मेरे कंधे पर आंसुओ की कतार के साथ सिर रखकर रोई और चुप हो गई।उसने मुझे जमकर चूमा चाटा। दिल खोलकर प्यार बरसाया और मेरी बाहों में खो गई।ओर उसके साथ ही एक शाम जो गुस्से के साथ शुरू हुई प्यार के साथ खतम हो गई।
मेरा उसके प्रति समर्पण इस हद्द तक बढ़ चुका था कि मुझसे सैंकड़ों मील दूर रहकर मेरी तकलीफ पर आहें भरना, आंसू भर लाना और चिंता करके मुझसे मेरी जिंदगी के उतार चढ़ाव के लिए जिद्द करना हुज्जत करना मुझे एक अजीब सा सकून देता था।उसका मेरे प्रति सजगता,समर्पण, स्नेह मुझे इस बात का अहसास दिलाता है कि उससे मेरी अंतरंगता तीन साल पुरानी न होकर सदियों पुरानी है। उसके द्वारा मुझे अपना जीवन साथी ही नही वरना अपना सर्वस्व कहना मानना,ओर उसी शिद्दत से संबंध को निभाना आत्म संतुष्टि का साधन सा महसूस होने लगा था। मेरी जिंदगी से जुड़े हर पल को जानना,उसमे अपनी भूमिका का खोजना और मेरे लिए चिंता करना उसको जिंदगी का रोजाना का शगल बन गया था।
ओर इस तरह मेरी आत्म संगनी का मेरी जिंदगी का एक महत्त्वपूर्ण स्थान बन गया था जो अब मेरी जिंदगी के आखिरी दिन तक बदस्तूर कायम रहेगा,इसी विश्वास के साथ।
मेरी आत्म संगनी का जानू....
© Dr.SYED KHALID QAIS