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सिर्फ़ दोस्त
बरसों बाद कुसुम का इस शहर में आना हुआ है। देवदार के पेड़ों के बीच से निकलते टेढ़े-मेढ़े रास्ते, आँखों के सामने से गुज़रती धुंध... जैसे हाथ पकड़कर स्वागत कर रही थी। ज़िंदगी की खींचा-तानी और रोज़गार के लिए एक शहर से दूसरे शहर भटकते हुए लगता था, कुछ तो यहाँ अपना छूट गया है। पुराने मित्र से बरसों बाद मिलकर जो सुकून मिलता है... आज वो सुकून इन सड़कों पर चलकर दोबारा महसूस कर पा रही थी। कितनी खट्टी-मीठी यादें जुड़ी हैं इस शहर से और ज़िंदगी के सबसे कठिन दौर से जब गुज़र रहे थे, तो यहीं की आबो हवा में खुलकर साँस लेना सीखा था।
यूँ ही उसका दिल किया कि जाने से पहले उन सब जगह एक बार जाया जाए जिधर कुछ खुश़नुमा लम्हें ज़िंदगी की गुल्लक में जमा किए थे उसने।
उसके क़दम अनायास ही सीधी सड़क से वापिस मुड़ चले और एक बड़े दरवाज़े के सामने उसके क़दम आकर रुक गए.... लाल रंग की रौशनी में रेस्तरां का नाम चमक रहा था 'ALPHA' उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई और मुस्कुराते हुए उसने रेस्तरां के अंदर झाँका, दरवाज़े से ही मुआयना किया, सिटिंग अरेंजमेंट... ओह वही है जो 10 साल पहले थी, धीमी आवाज़ में कोई ग़ज़ल चल रही थी, यहाँ का माहौल बिल्कुल नहीं बदला था। उसने खिड़की की तरफ वाली मेज़ की ओर देखा वहाँ पहले से कोई बैठा हुआ था। साथ लगती कुर्सी खाली थी तो जाकर वो बैठ गई।
कुछ खाने का ऑर्डर देकर कुछ पल के लिए आँखें मूँदकर पुराने दिनों को याद करने की कोशिश करने लगी.... 'अरे! कुछ तो खा लिया करो कुसुम, वरना किसी दिन रिज पर जोरों से हवा चली तो तुम हवा संग उड़ जाओगी.... हा हा हा.. अचानक उसने आँखें खोली तो वो हँसने का दिलकश अंदाज़! उसे लगा जैसे अभी-अभी ही सुनी हो ये आवाज़।
कुसुम ने बाईं तरफ मुड़कर देखा, उसकी साँसें जैसे रुक सी गई... सागर !! खिड़की की तरफ वाली जगह पर बैठा शख़्स शायद अपने परिवार के साथ था, जो अपने बच्चे की किसी बात पर ठहाका लगाकर हँस रहा था। इतनी देर से कुसुम के चेहरे पर छाई हुई मुस्कुराहट गायब हो गई। ठंड से लाल हुए गाल जैसे स्याह पड़ गए, आँखें पानी से ऐसे भर गईं कि उसको दिखना बंद हो गया।
कुसुम ने जल्दी से मुँह मोड़ लिया और अतीत की यादें चलचित्र की तरह उसकी आँखों के सामने जैसे रिवाइंडिंग मोड में दो मिनट में एक पल पर आकर ठहर गई.... "तुम दोस्त हो सकती हो इस से ज़्यादा कुछ नहीं।" सिर्फ़ दोस्त ! दोस्त के आगे ‘सिर्फ़’ शब्द के क्या मायने हैं? उसे वो आज तक समझ नहीं आया। दोस्त तो एक ऐसा शख़्स है जिससे तुम अपने ऐब और हुनर छुपा नहीं सकते। अगर कुछ सलाह दी है तो कुछ सोच समझकर दी होगी। लेकिन पता नहीं क्यों वो इस बात पर इतना भड़क गया कि जाने क्या-क्या कह गया।
एक अरसे बाद हालांकि उसको पता चल गया कि कुसुम ने उसको गलत सलाह नहीं दी थी, लेकिन तब तक कुसुम शहर छोड़कर जा चुकी थी। ऐसा नहीं कि उसको कभी याद नहीं आई अपने दोस्त की, बस दिल में एक चुभन थी कि उसके दोस्त की ज़िंदगी में इस ‘सिर्फ़’ दोस्त की कोई अहमियत नहीं है।
वो नहीं जानती कि सागर ने उसको फिर कभी याद किया या नहीं, उसको अपने व्यवहार पर कभी ग्लानि हुई या नहीं.... उसने अपना पता ठिकाना जो किसी दोस्त को नहीं बताया था।
उसका ऑर्डर मेज़ पर लग चुका था, ज़ल्दी से उसने अनमने ढंग से खाना शुरू किया। उसकी साँसें, हाथ और आँखें एक दूसरे का साथ नहीं दे पा रहे थे। ख़ुद को किसी तरह संभाला उसने और सहज होने की कोशिश की। अचानक उसको महसूस हुआ कि कोई उसको गौर से देख रहा है... हाँ ये सागर ही था। शायद उसे पहचानने की कोशिश कर रहा था। सागर उसे देखकर हल्का सा मुस्कुरा दिया लेकिन कुसुम भावशून्य हो जड़वत उसको देखती रही, उसने चुपके से अपनी आँखें साफ की और अपनी प्लेट में नज़रें गड़ाए देखती रही... सोनम मारवी की मखमली आवाज़ धीमे से हवा में घुल रही थी.... जिसको उबूर करना तकाज़ा-ए-वक़्त था.... सर को उसी पहाड़ से टकरा रहे हैं आपssss ....कुसुम ने कुछ सोचा; लंबी आह भरी, बिल और टिप मेज़ पर रखकर अपना बैग उठाया और सागर की तरफ बिना देखे बाहर निकल गई। सागर उसको दूर जाते देखता रहा...


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