...

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यात्रा वृतांत
एक दिन किसी काम के सिलसिले में बाहर जाना था।
तो इस कारण बस से सफर कर रहा था।
चूंकि बस में बहुत भीड़ थी तो
कई लोग खड़े खड़े भी सफर कर रहे थे।
मैं बस के भरने से पहले ही उसमें
दाखिल हो चुका था तो मुझे खिड़की
के पास वाली सीट मिल गई थी।
मैं बस में बैठे-बैठे कुछ कविताएं पढ़ रहा था।
कुछ दूर जाने के बाद एक महिला अपने छोटे से
बच्चे के साथ बस में चढ़ी।
उसकी उमर कोई तीन-चार बरस होगी।
जैसे ही वह बस में चढ़ा उसने मां का हाथ छोड़ दिया।
वह भाग कर खिड़की के पास आ गया और
बाहर की तरफ देखने की कोशिश करने लगा।
मां बार बार उसे अपनी तरफ खींच रही थी पर
बच्चा बहुत चंचल और नटखट था।
वह बार बार मां से अपना हाथ छुड़ा लेता और
वापस खिड़की के पास पहुंच जाता।
मैं बहुत देर से ये देख रहा था।
मैंने उसकी तरफ देखा तो वो मेरी तरफ
देख के एक बार तो मुस्कुरा दिया पर
अनजान होने की वजह से उसने
वापस अपना मुंह फेर लिया।
हालांकि सर्दी के चलते उसे नहलाया
नहीं गया था और उसके कपड़े भी माटी में सने थे
जिससे साफ पता चल रहा था की वह माटी
में खेल कर आया है।
पर बच्चा सुंदर बहुत था और उसी से साथ
उसके चेहरे से मासूमियत झलक रही थी।
अब वह बिलकुल मेरे आगे खड़ा था खिड़की
के पास और बाहर देख रहा था।
अपने छोटे कद की वजह से वह ठीक से
देख नहीं पा रहा था इस कारण उसके
चेहरे पर एक अजीब सी उदासी छाई हुई थी।
उसकी इस हालत को देख कर मेरा मन भी
उसकी और आकृष्ट हुआ और मैंने उसे अपनी गोद
में बिठाने की कोशिश की।
एकबारगी तो उसे थोड़ी सकपकाहट हुई जिसे मैंने
भांप लिया और उसे आश्वस्त किया की
वह मेरी गोद में सुरक्षित रहेगा।
आखिर वह मेरी गोद में बैठ गया और
थोड़ी देर में मुझ से घुलमिल गया।
गोद में बैठते ही वह इतना खुश हुआ
जैसे उसे जन्नत मिल गई हो क्योंकि अब
उसे बस से बाहर अच्छे से दिखाई दे रहा था।
वह सड़क पर दौड़ते अन्य वाहनों को देख कर
बहुत खुश हो रहा था।
मुझे भी उसे अपने पास बिठाकर एक अनजाने से सुख
की अनुभूति हुई।

• सच में बच्चे बहुत प्यारे और बहुत मासूम होते हैं, बस उनके मन के भावों को अगर हम अच्छे से समझ सकें तो वो हमारे साथ बहुत जल्दी घुलमिल जाते हैं।


© मनराज मीना