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आंसूओं, तुम भी क्या कमाल हो!💧💧
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उन्हेंं फ़िज़ूल न समझिए और न ही फ़िज़ूल ज़ाया कीजिए। आंसूओं को बेशकीमती समझिए। दिल की प्रिय संपत्ति समझिए।

जब भावनाओं के बादल उमड़ते-घुमड़तेे हैं और आंखों को कुछ दिखाई नहीं देता या जब मन में असंख्य आशंकाएं और असहनीय पीड़ाएं हो या फिर कोई कलंक माथे पर हो तब,मन के भीतर जो भंवर समान घूर्णन कर रहा होता है, वह बिना किसी शर्मो-हया के निकल पड़ता हैं— आंसू रूपी मोतियों के रूप में! मानो पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो गया हो और मूसलाधार वर्षा बरस रही है।

चाहे बाहरी रिसते ज़ख़्म हो या अंदरूनी बहते ज़ख़्म या ज़माने की दी खरोचें अथवा समझाना- मनाना हो या प्रशंसा प्रकट करनी हो अथवा खुशी मनानी-दर्शानी हो तो भी आंसूओं का कोई सानी नहीं। आंसूओं का कोई विकल्प नहीं। मानव अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा है आंसू या यूं कहें कि जीवन की हर अच्छी-बुरी घटना दुर्घटना का अनिवार्य साथी है वो!

बिन बुलाए, बिन मदद मांगे सदैव हाज़िर। A friend in need is a friend indeed! मन की भीतरी चोटों और टूट-फूट को ठीक करने के लिए पलस्तर और तराई करता कुशल मिस्त्री या मित्र! टूटते-बिखरते मनोभावों की मुरम्मत के लिए स्वेच्छा से सदैव उपस्थित— क्या बात है तुम्हारी अश्रूओं!

तुम वाकई बेशकीमती हो, अपने-आप में संपूर्ण हो। वस्तुत:, तुम मानव भावनाओं को समझने वाले प्रबुद्ध पदार्थ हो! कभी-कभी तो लगता है कि तुम न केवल सोचते समझते हो अपितु सकारात्मक कार्रवाई भी करते हो।

मनुष्य भले ही भूल जाता है किन्तु आंसूओं, तुम मनुष्य के सभी मनोभावों की कद्र करते हो, याद रखते हो और मदद करते हो। सचमुच तुम अद्भुत, अनुपम हो, कमाल हो!

सभी मनोभावों, सभी मौसमों और सभी अवसरों के लिए तुम आवश्यक हो, अनिवार्य हो, अनुकूल हो। तुम ईश्वर का वरदान, इक आसमानी नेमत हो!
तुम्हें दिल से सलाम और शुक्रिया!!
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—Vijay Kumar—
© Truly Chambyal