...

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रंग ए शाम थी
एक दिन मैं नदी किनारे बैठा हुआ था, वो शाम मुझे आज भी याद है।
सूरज का ढलता हुआ वो खूबसूरत सा नज़ारा मेरे मन को भा गया हल्के संतरे रंग का वो बादल में रंग बिखेर रहा था। हल्की आसमानी, हल्की नीली तो हल्की पीली रौशनी आसमान में बिखेर रही थी।
मैं बैठा बैठा ही वहां पर मंत्र मुग्ध हो चुका था मेरा जी चाहता था कि मेरा ये वक्त वहीं ठहर जाए।
इस खूबसूरत नज़ारे के बारे में मैं जब भी सोचता हूं तो ये लगता है कि मेरी आँखें कितनी खुशनसीब है तो मैं ये नज़ारा देख पा रहा हूं।
कितना सुंदर कितना मनोरम है।
जैसे ही शाम ढल कर अंधेरा छाने वाला था वैसे ही मेरी आंखें खुल गई और मैं अपने काले चस्मे को पहन कर अपनी छड़ी उठाई। काश मैं सच में देख सकता जो मेरे सपने की रंग ऐ शाम थी।

© dhani_ke_alfaaz